कार्तिक मास में होती है 84, 14 और 5 कोस की परिक्रमा

कार्तिक मास में होती है 84, 14 और 5 कोस की परिक्रमा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या में कार्तिक मास में आयोजित होने वाली परिक्रमा का विशेष महत्व है. यहां 84, 14 और 5 कोस की भी परिक्रमा लगती है. 84 कोस परिक्रमा में ज्यादातर साधु-संत हिस्सा लेते हैं वहीं 14 कोसी व 5 कोस की परिक्रमा में आम लोग हिस्सा लेते हैं. पंचकोसी और 14 कोस की परिक्रमा अयोध्या क्षेत्र में लगती है, और 84 कोस की परिक्रमा में पूरे अवध क्षेत्र की परिक्रमा होती है. अयोध्या में परिक्रमा करने के बाद कार्तिक मास में कार्तिक स्नान किया जाता है जिसका सनातम धर्म में विशेष महत्व है. अगर आप 14 कोस की परिक्रमा करने में असमर्थ हैं तो देवउठनी एकादशी के दिन पंचकोसी परिक्रमा कर सकते हैं.
धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व -फलाहारी बाबा
अयोध्या में परिक्रमा की परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों से चल रही है. मथुरा, वृंदावन और ब्रज कोस की परिक्रमा की तरह अयोध्या में भी परिक्रमा लगती है। फलाहारी बाबा ने बताया की मान्यता है कि ऐसा करने से पंचतत्वों से निर्मित इस शरीर की शुद्धि होती है. देवउठनी एकादशी के दिन अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा करने से ना केवल इस जन्म के बल्कि सभी जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. परिक्रमा देने के बाद पवित्र सरयू नदी में स्नान किया जाता है और श्रीराम के जयघोष के साथ परिक्रमा पूरा किया जाता है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, देशभर में जितने भी तीर्थ स्थल हैं, वहां पर एक विशेष ऊर्जा महसूस होती है. यह ऊर्जा मंत्रों और पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों से निर्मित होती है. ऐसे में जब यह ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है तो मन में शांति आती है और आत्मबल मजबूत होता है। पंचकोशी परिक्रमा के पश्चात श्रद्धालुओं ने सरजू में स्नान एवं दीपदान किया।