कार्तिक शुक्ल नवमी अर्थात अक्षय नवमी- बुधवार- 2 नवंबर को- फलाहारी बाबा

कार्तिक शुक्ल नवमी अर्थात अक्षय नवमी-
बुधवार- 2 नवंबर को- फलाहारी बाबा
अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी फलाहारी जी महाराज ने बताया की कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी कहा जाता है ।
आज के दिन विष्णु भगवान ने कुष्माण्ड दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई थी !
अतः इस दिन कुष्माण्ड(कद्दू) दान करने वाला उत्तम फल पाता है यह निश्चित है !
बहुत से बीजों की साथ ब्रम्हाजी ने कुष्माण्ड(कद्दू) को इसलिए बनाया था की पितरों के उद्धार के लिए विष्णु जी को दूँगा !
अक्षय नवमी का महत्व :
स्कंद पुराण के अनुसार यह तिथि युगादी तिथि है, इसी तिथि को सत्ययुग का प्रारंभ हुआ था ।
एतश्चतस्रस्तिथयो युगाद्या दत्तं हुतं चाक्षयमासु विद्यात् ।
युगे युगे वर्षशतेन दानं युगादिकाले दिवसेन तत्फलम् ॥
अर्थात- प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह युगादि काल में एक दिन के दान करने से प्राप्त हो जाता है।
अक्षय नवमी के दिन किया हुआ जप, तप, हवन, पूजन, दान, अनुष्ठान अक्षय माना जाता है ।
इस दिन ब्राम्हण को भोजन जरुर करायें और यथासंभव दान दें ।
ऐसा माना जाता है की कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आँवले के पेड़ से अमृत की बुँदे गिरती हैं और कोई व्यक्ति यदि उस दिन आँवले के नीचे भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है जिससे व्यक्ति रोगमुक्त और दीर्घायु बनता है इसलिए अक्षय नवमी को आँवले के पेड़ का पूजन करें और उसके नीचे भोजन अवश्य करें ।
अगर किसी कारण वश आप आँवले के पेड़ के नीचे भोजन ना कर पाएं तो आँवला अवश्य खाएं ।
अक्षय नवमी को किसी मंदिर में अथवा धार्मिक स्थल में पका हुआ कुष्माण्ड अर्थात कद्दू/कोहड़ा)/कुम्हड़ा(अलग अलग जगहों पर अलग अलग नाम हैं) जरुर दान करें, ऐसा करने से घर से बीमारी जाती है ।
ऐसी भी मान्यता है दान किये हुए कद्दू/कोहड़ा-कुम्हड़े में जितने बीज होते हैं उतने वर्षों तक दानकर्ता व्यक्ति स्वर्ग में निवास करता है ।