June 24, 2025

शरद-पूर्णिमा को चन्द्रमा की किरणें करती हैं अमृत की वर्षा-आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी

 

1- शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा धरती के सर्वाधिक निकट 3 लाख 60 किमी की दूरी पर रहता है जबकि चन्द्रमा की सर्वाधिक दूरी 4 लाख 6 हजार होती है।

2-इस तिथि को ‘कोजागरी’पर्व कहा जाता है।

3-‘कोजागरी’ का अर्थ रात्रि-जागरण है न कि कौन जाग रहा है। संस्कृत में ‘को’ का आशय रात्रि से है और जागरण का अर्थ जागने से है।

4-इस तिथि को रात्रि में निशीथ काल (मध्यरात्रि) तक चन्द्रमा की चन्द्रमा की तरफ़ मुख करके बैठना, पूजा और जप-पाठ भी करना चाहिए।

5-चन्द्रमा से ‘रजत-ज्योत्स्ना’ की वर्षा का आशय चांदी की किरणों की वर्षा है।

6-वैज्ञानिकों के अध्ययनों में भी स्पष्ट हो चुका है कि चन्द्रमा पर चांदी की बहुलता है।

7-इस तिथि को रात्रि में प्राचीन काल से दूध की खीर को खुले आकाश में रखने का विधान है। इस वर्ष 5:49 बजे सायं सूर्यास्त होगा। अतः इसके एक-दो घण्टे बाद से मध्यरात्रि तक खुले आकाश में बैठना चाहिए।

8-खीर कम से कम 4 घण्टे चन्द्रमा की किरणों में रखना चाहिए। इसमें चांदी का कोई टुकड़ा और तुलसीपत्र डाल देना चाहिए।

8-खीर स्टील के बर्तन की जगह पीतल के बर्तन में बनाना बेहतर होता है।

9-हर माह की पूर्णिमा तिथि में संभव हो तो चन्द्रमा की किरणों में बैठना चाहिए। अत्यंत शीत के महीनों को छोड़ देना चाहिए।

10-चन्द्रमा को औषधियों का देवता ऋषियों ने बताया है।

11-चन्द्रमा की किरणों में बैठने से मन में शांति का भाव बनता है। यह निरन्तर प्रयास से ही संभव है। एक बार के प्रयास से कोई उपलब्धि नहीं मिलती।

12-शनै:-शनै: मिली उपलब्धि स्थायी होती है।

13-शिशु जन्म लेने के बाद धीरे-धीरे बड़ा होता है।

14-जन्म लेते 24 घण्टे में युवा नहीं हो सकता है।
15-खीर में पोषकता-वृद्धि के लिए दूसरे दिन ही खीर खाना चाहिए।

16-शुक्लपक्ष में द्वितीया तिथि से लेकर पूर्णिमा तिथि तक चन्द्र-दर्शन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। सिर्फ चतुर्थी तिथि को छोड़कर। इस तिथि का निषेध गोस्वामी तुलसीदास ने ‘..तजऊ चौथ की चन्द्र की नाईं…’ चौपाई में किया है।

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