June 24, 2025

अपनी मर्यादा से हटकर जीना पाप है:- जीयर स्वामी।

IMG-20220926-WA0038

अपनी मर्यादा से हटकर जीना पाप है:- जीयर स्वामी।

बलिया जनपद के जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के पास आयोजित चातुर्मास ब्रत के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न पूज्य श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा की मर्यादा से अलग हटकर जीना पाप है। हर श्रेणी के व्यक्तियों की अलग-अलग धर्म और मर्यादायें है, जिनका सम्यक् पालन करते हुए जीवन यापन करना ही धर्म है। व्यक्ति को कभी भी अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। श्री जीयर स्वामी ने कहा कि धर्म का अपना अलग-अलग स्वरुप होता है। वह उसी दायरे में सुशोभित होता है। मानव धर्म, स्त्री धर्म, ब्राह्मण धर्म, ब्रह्मचारी धर्म, संन्यासी धर्म, कृषक और विद्यार्थी धर्म आदि के लिए पहली अर्हता सत्य बोलना है। साथ ही दया, सदाचार, परोपकार एवं सरलता की भावना के साथ जीवन यापन करना है। इन सभी धर्मो में मानव धर्म सर्वोच्च है, जिसमें परोपकार, दया, करुणा एवं समदर्शिता आदि के गुण समाहित हैं।

श्री जीयर स्वामी ने सूत–सौनक संवाद में श्रीमद् भागवत महापुराण के मंगलाचरण के द्वितीय श्लोक की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान समदर्शी हैं। जो जैसा है, उससे वैसा ही वर्ताव करना चाहिए। समदर्शिता के उदाहरण स्वरुप गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, भाई बहन, सेवक-स्वामी से यथोचित व्यवहार ही समदर्शिता है। सिद्ध और साधक की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि सिद्ध साधन के भटकाव से मुक्त रहता है। जबकि साधक में भटकाव संभव है। जब तक साधक को सिद्धि की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक उसको अपनी साधना पर विश्वास नहीं होता। उसके मन में अनेक विकल्प उठते हैं। उसमें अपने पथ से विचलन की संभावना भी होती है। सूत जी महराज सिर्फ साधक नहीं सिद्ध भी हैं। इसीलिए धन, बल, आयु एवं कुल की दृष्टि से बड़ा न होने पर भी सूत जी को ब्यास गद्दी पर बैठाया गया।

 

About Post Author