June 25, 2025

शुगर लेवल बढ़ते ही पैरों का रखें खास ध्यान 

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शुगर लेवल बढ़ते ही पैरों का रखें खास ध्यान 

 

डायबिटीज में शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है या फिर जितना इंसुलिन बनता है बॉडी उसका इतना इस्तेमाल नहीं कर पाती है. शरीर में इंसुलिन की कमी से कोशिकाएं प्रतिक्रिया देना बंद कर देती हैं. डायबिटीज के मरीजों को पैरों में दो तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है आइए जानते हैं इनके बारे में.

डायबिटीज एक क्रॉनिक डिजीज है जो जिंदगी भर रहती है. डायबिटीज की समस्या तब होती है जब किसी व्यक्ति के खून में ग्लूकोज का स्तर काफी ज्यादा होता है या इसे थोड़ा और सरल भाषा में समझें तो जब पैनक्रियाज (अग्नाशय) बिल्कुल भी इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता या बहुत कम मात्रा में करता है तब डायबिटीज की समस्या होती है. डायबिटीज मुख्य तौर पर दो तरह का होता है – टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज.

टाइप 1 डायबिटीज में पैनक्रियाज बिल्कुल भी इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज में पैनक्रियाज काफी कम मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन करता है. एक और तरह के डायबिटीज को जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं. जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान होती है. इन तीनों तरह के डायबिटीज में सबसे कॉमन बात यह है कि इन तीनों में ही खून में ग्लूकोज की मात्रा काफी ज्यादा हो जाती है.

डायबिटीज के चलते व्यक्ति को पैरों में दो तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जैसे, डायबिटिक न्यूरोपैथी और पेरीफेरल वस्कुलर डिजीज (पेरीफेरल धमनी रोग).

डायबिटिक न्यूरोपैथी में, अनियंत्रित डायबिटीज आपकी नसों को प्रभावित कर सकता है और नुकसान पहुंचा सकता है. जबकि, पेरीफेरल वस्कुलर डिजीज आपके ब्लड के फ्लो को प्रभावित करता है, जिससे पैरों में कई तरह के लक्षण नजर आते हैं. पैरों में नजर आने वाले डायबिटीज के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं-

दर्द, झनझनाहट और पैरों का सुन्न होना

डायबिटिक न्यूरोपैथी एक तरह का नर्व डैमेज होता है जो डायबिटीज के मरीजों में होता है. मेयो क्लिनिक के मुताबिक, डायबिटिक न्यूरोपैथी के चलते टांगों और पैरों की नसें डैमेज हो जाती हैं जिसके चलते टांगों, पैर और हाथ में दर्द और सुन्न पड़ने जैसे लक्षण नजर आते हैं. इसके अलावा इससे डाइजेस्टिव सिस्टम, यूरिनरी ट्रैक्ट, रक्त कोशिकाओं  और हृदय संबंधित दिक्कतें भी हो सकती हैं. हालांकि, कुछ लोगों में इसके लक्षण काफी हल्के नजर आते हैं जबकि कुछ में इसके लक्षण काफी दर्दनाक होते हैं.

पैर में अल्सर छाले

आमतौर पर स्किन में दरार पड़ने या गहरा घाव बन जाने को अल्सर कहा जाता है. डायबिटिक फुट अल्सर एक खुला हुआ घाव होता है और डायबिटिज के 15 फीसदी मरीजों को इसका सामना करना पड़ता है. यह मुख्य रूप से पैर के तलवे में होता है. हल्के मामलों में, फुट अल्सर के कारण स्किन खराब हो जाती है लेकिन इसके गंभीर मामलों में शरीर के उस हिस्से को काटने तक की नौबत आ सकती है.  ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचने के लिए शुरुआत से ही डायबिटीज के खतरे को कम करना काफी जरूरी है.

एथलीट फुट (पैरों में दाद)

डायबिटीज के कारण नसों के डैमेज होने से एथलीट फुट समेत कई दिक्कतें बढ़ सकती है. एथलीट फुट एक फंगल इंफेक्शन होता है जिसके कारण पैरों में खुजली, रेडनेस, और दरार पड़ने की समस्या का सामना करना पड़ता है. यह एक या दोनों पैरों को प्रभावित कर सकता है.

गांठ बनना या कॉर्न्स और कॉलस

डायबिटीज के चलते कॉर्न्स और कॉलस की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है.  कॉर्न्स या कॉलस तब होता है जब किसी जगह की त्वचा पर काफी ज्यादा दबाव या रगड़ पड़ती है तो वह त्वचा सख्त और मोटी होने लगती है.

पैर के नाखूनों में फंगल इंफेक्शन

डायबिटीज के मरीजों में नाखूनों में होने वाले फंगल इंफेक्शन का खतरा भी काफी ज्यादा होता है. इसे ऑनिकोमाइकोसिस के नाम से जाना जाता है जो आमतौर पर अंगूठे के नाखून को प्रभावित करता है. इस समस्या के चलते नाखूनों का रंग बदलने लगता है और वह काफी मोटे हो जाते हैं कुछ मामलों में नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं. कई बार नाखून में चोट लगने के कारण फंगल इंफेक्शन भी हो सकता है.

गैंग्रीन-

डायबिटीज रक्त कोशिकाओं भी प्रभावित करता है जिसके कारण उंगलियों और पैरों तक ब्लड और ऑक्सीजन की सप्लाई काफी कम या ना के बराबर हो जाती है. गैंग्रीन तब होता है जब ब्लड फ्लो बिल्कुल भी नहीं हो पाता और टिशू मर जाते हैं.

 

शुगर लेवल बढ़ गया तो उसका सीधा असर पैरों  पर दिखाई देगा.

बरसात के मौसम  में यह ज्यादा होता है क्योंकि मौसम में नमी होती है और अगर पैरों पर कोई घाव होता है तो वह जल्दी सूखता नहीं है. बार-बार बरसात के पानी में भीगने से पैरों की स्किन को नुकसान हो सकता है और इंफेक्शन का रिस्क भी बढ़ सकता है. ऐसे में डायबिटीक मरीजों के लिए अपने पैरों का खयाल रखना बहुत जरूरी हो जाता है. क्या आपको पता है कि डायबिटीज के मरीज के पैर का इंफेक्शन अगर बढ़ गया तो पैर काटने की नौबत तक आ जाती है.

इन बातों का रखें खयाल

डायबिटीज से ग्रसित मरीज सही फुटवियर ही पहनें ताकि उन्‍हें पैरों में चोट न लगें क्‍योंकि मधुमेह की बीमारी में एक बार घाव हो जाने पर उसे भरने में काफी समय लग जाता है, इसलिए सॉफ्ट चप्‍पल पहनें. डायबिटीज पेशेंट के लिए अलग से फुटवियर आती हैं उन्‍हें पहनना चाहिए.

खुद से दवाओं का सेवन न करें

डायबिटीज मरीजों को सख्‍त रूप से सलाह दी जाती है कि अगर उन्‍हें पैरों में कोई घाव या चोट लगी है या किसी प्रकार का दाना इत्‍यादि हो जाता है तो वे अपने आप से दवा का सेवन शुरू न कर दें. डॉक्‍टर से सही सलाह लेने के बाद ही दवा खाएं. ये घाव धीरे धीरे अल्सर का रूप ले लेता है. पैरों की उंगलियों के बीच की जगह को जितना हो सके उतना ड्राई रखें क्योंकि वहीं पर इंफेक्शन की संभावना अधिक होती है.

बाहर से घर लौटने के बाद पैरों को साबुन के पानी से धोएं और उसके बाद उन्हें सूखने दें

पैरों में कोई चोट या छाले होने पर गर्म पानी से पैरों को धोएं लेकिन पैरों को गर्म पानी में डुबोकर ना रखें

जितना हो सके पैरों में मोजे पहनकर रखें

रोजाना अपने पैरों की अच्छी तरह जांच करें ताकि आपके पैरों में कोई चोट लगी हो तो उसका पता चल सके

स्मोकिंग करने से पैरों की नसे सिकुड़ सकती हैं, इससे ब्लड सर्कुलेशन बिगड़ सकता है, जिससे घावों को भरने में समय लग सकता है और आपकी तकलीफें बढ़ सकती हैं

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