बांस की सामग्री बनाने वाले बासफोर परिवार अब अपने पुश्तैनी काम से दूर होने को मजबूर

विकास राय गाजीपुर-घर में वैवाहिक कार्यक्रम के अलावा रोजमर्रा के काम में बांस से बनी वस्तुओं का सदियों से प्रयोग होता चला आ रहा है।यह काम-धंधा इस खास वर्ग के बासफोर परिवार के जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन रहा है लेकिन करोना महामारी के चलते लाकडाउन होने की वजह से सारे वैवाहिक कार्यक्रम स्थथगित हो जाने के चलते यह धंधा बहुत मंदा पड़ गया है।परिणामस्वरूप बासफोर परिवार अपने इस पुश्तैनी कारोबार को लेकर बहुत परेशान है। इस व्यवसाय से जुडे बिशेष समुदाय के लोग
अपने इस कारोबार को लेकर इस समय सबसे अधिक चिंतित है।उनका मानना है की बांस से बनने वाले सामानो का पलीता प्लास्टिक ने लगाया है।बांस से बनने वाली वस्तुएं प्लास्टिक से बनने लगीं और यह काम मंदा होने लगा इसके बावजूद रीति-रिवाजों में मूलतः बांस से बनी टोकरी,बांस से बना बड़ा व छोटा ढक्कन, गर्मी से राहत देने के लिये (हाथ से हवा करने वाला पंखा) सूप, झांपी (ढक्कन वाली बड़ी टोकरी सहित अन्य सामग्रियों का ही उपयोग होता रहा है। खेती किसानी मे अनाज को ओसाने के काम आने वाले सामानो मे बाँस से बनने वला पनिहा अब दिखाई देना बंद हो गया है ।

घरेलू सामग्री के साथ घर के जमीन पर बैठने व घेरा करने के लिए चटाई का उपयोग बड़े पैमाने पर होता था अब इसकी जगह प्लास्टिक की शीट ने ले ली। इसके अलावा बैलगाड़ी में छांव के लिए भी बास से बने सामान का उपयोग किया जाता था
इस कारोबार से जुड़े करीमुद्दीनपुर बालापुर मार्ग पर जोगा मुसाहिब के पास खेमपुर में सडक के किनारे वर्षों से बसे सबितरी.बब्बन डोम.बिंहाचल.झम्मन.सुधिया देवी.गुडिया. धर्मेंद्र आदी

बांसफोर एवम बाराचंवर विकास खण्ड के हरदासपुर और दुबिहाँ गांव मे निवास करने वाले बांसफोर परिवार के जयनाथ बांसफोर,मुन्द्रिका बासफोर,जनार्दन बांसफोर,सुरेन्द्र बांसफोरऔर टैम्पू बांसफोर ने कहा कि समय के साथ बहुत बदलाव आया है अब इस व्यवसाय में पहले जैसा मुनाफा नहीं रहा। जब से प्लास्टिक से बनी हुई वस्तुएं मार्केट में बिकने पहुंची हैं, तब से बांस का व्यवसाय प्रभावित हुआ है।

साथ ही बांस के मूल्य में भी बढ़ोतरी होने से इस धंधे पर असर पड़ा है। पहले गांव मे बांस की बहुतायत क्षेत्रफल मे पैदवार होती थी।जबसे वनो का तेजी से कटान शुरू हुआ तभी से बाँस के उत्पादन मे भी कमी होने लगा।गांवो मे पहले खेती के साथ ही बाग बगीचे भी लोग लगाते थे और उसी के चारो तरफ बाँस लगाते थे लेकिन पुराने पेड पौधे कटते ही बाँस की पैदवार समाप्त हो गयी जिससे यह धंधा प्रभावित हो गया। बाँस की नजदीक कोई मंडी नहीं होने से बांस नहीं मिल पाते है । जिससे यहां के बांस कलाकार सुविधा के अनुसार खरीद सके ।उन्होंने बताया कि हरदासपुर और दुबिहाँ गावो मे 20 से अधिक बांसफोर परिवार निवास करता है।


बांस के पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़े जयनाथ बासफोर ने कहा कि वे बालपन से इस व्यवसाय से जुड़े हैं. वर्तमान पीढ़ी के सामने इस धंधे को करने के लिये प्रयाप्त मात्रा मे बांस नहीं मिलने से वे इसे रोजगार के रूप में अपनाना पसंद नहीं करते है। और इस पुश्तैनी व्यवसाय से दूर होना चाह रहे है क्योंकि इसमें पहले जैसा आर्थिक स्थिरता नहीं रही इस व्यवसाय में आर्थिक रूप से सक्षम होना मुश्किल है।
