भगवान शिव को रुद्राभिषेक अत्यंत प्रिय है-आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी

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भगवान शिव को रुद्राभिषेक अत्यंत प्रिय है-आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी

 

भगवान शिव को रूद्राभिषेक अत्यंत प्रिय है।
शिव पुराण में भी वर्णित है कि रुद्राभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं। शुक्ल यजुर्वेद से रुद्राष्टध्यायी पाठ का संग्रह किया गया है। इसमें शिव के साकार और निराकार दोनों रूपों का वर्णन किया गया है। रुद्रा-अष्टध्यायी के छह अंगों रूपक इन्द्री लघु रूद्र महारूद्र अतिरुद्र और रुद्राभिषेक से शिव की पूजा की जाती है। रुद्र रुप में भगवान शिव दु:खों का नाश करने वाले हैं इसलिए शिव-कृपा पाने के लिए जरुरी है शिव को प्रसन्न करना।

आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी ने बताया की भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका है रुद्राभिषेक। रूद्र और शिव पर्यायवाचीशब्द हैं, रूद्र शिव का प्रचंड रूप है।शिव कि कृपा से सारी ग्रह बाधाओं औरसमस्याओं का नाश होता है। भगवान शिव को षोड्शोपचार विधि से पूजन व गंगाजल, दुध, दही, शहद, नारियल पानी, गन्ना रस, इत्र या सुगंधित तेल, केशर युक्त दूध समेत अन्य वस्तुओं से अभिषेक किया जाता है। इसपद्धति को रुद्राभिषेक कहा जाता है। इसमें शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रो का पाठ किया जाताहै। सावन में रुद्राभिषेक करना शुभ होता है। सावन में रुद्राभिषेक करने से मनुष्य की सभीमनोकामनाए जल्दी पूरी हो जाती है। रुद्राभिषेक शिवलिंग पर किया जाता है लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि किस शिवलिंग पर रुद्राभिषेककरना शुभ फलदायी होता है.

रुद्राभिषेक के लिए कौन सा शिवलिंग है उत्तम ?

– घर में पार्थिव शिवलिंग बनाकर अभिषेक किया जा सकता है

– मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना उत्तम होता है.

– मंदिर से अधिक नदी तट पर रुद्राभिषेक करना शुभ होता है

– सबसे अधिक पर्वतों पर रुद्राभिषेक करना शुभ होता है

– शिवलिंग के अभाव में अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक और पूजा की जा सकती है.

शिवलिंग का अभिषेक किए जाने की परंपरा बेहद प्राचीन है। पुराणों में भी शिव के अभिषेक की बेहद प्रशंसा की गई है। रुद्राभिषेक में कुछ बातों का ध्यान रखना भी बेहद ज़रूरी है। किसी खास मनोकामना की पूर्ति के लिए अभिषेक किया जा रहा हो तो शिव जी का निवास देखना बेहदजरूरी है। आइए विस्तार से जानते हैं शिव जी का निवास कब मंगलकारी होता है

 

कब होता है शिवजी का निवास मंगलकारी ?

शुक्ल पक्ष की द्वितीया और नवमी और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी ,अमावस्या के दिन शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।
की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी और शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथिको भी भोलेनाथ कैलाश पर रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी और शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथी को महादेव अपने प्रिय नंदी पर सवार होकर संसार भ्रमण पर निकलते है।
प्रत्येक माह की इन तिथियों को महादेव का निवास मंगलकारी होता है। इन तिथियों में रुद्राभिषेककरना शुभ होता है। लेकिन ये भी जानना जरुरी है कि किन-किन तिथियों को रुद्राभिषेक नहींकरना चाहिए.

इन तिथियों को रुद्राभिषेक ना करें:

– प्रत्येक महीने की कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी और शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा कोभगवान शिव श्मशान में समाधि लगाए रहते हैं.

– कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी और शुक्लपक्ष की तृतीया, दशमी में महादेव देवताओं के साथ सभाकरते हैं और उनकी समस्याएं सुनते हैं.

– प्रत्येक महीने की कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी में और शुक्लपक्ष की चतुर्थी और एकादशी को शंभु क्रीडारत रहते हैं.

-कृष्ण पक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी और शुक्ल पक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी में को महादेव भोजन करते हैं।

 

 

इन तिथियों में रुद्राभिषेक नहीं करना चाहिए। लेकिन शास्त्रों में कुछ स्थान और कुछ ऐसे समय बताए गए हैं जिनमें तिथियों का विचार नहीं किया जाता है। सावन के सोमवार हो तो तिथि का विचार नहीं किया जाता है इसी तरह से शिवरात्रि या प्रदोष की तिथियां पड़ रही हों तो भी तिथी नहीं देखी जाती है । स्थान की बात करें तो यदि भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग हो या कोई मान्यता प्राप्त सिद्ध शिवलिंग ऐसी जगहों पर भी रुद्राभिषेक करना मंगलकारी होता है। यहां तिथियों पर विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

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