अश्रद्धा पूर्वक चढ़ायी गयी बहुमूल्य वस्तु भी भगवान को प्रिय नही है-आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी

भगवान शंकर के पूजन करने के प्रकारो मे पुष्प.पत्र एवम जल अत्यंत प्रिय है.गीता मे भगवान कृष्ण ने कहा है कि पत्र पुष्प या जल जो भक्त भक्ति एवम श्रद्धा पुर्वक मुझे समर्पित करता है मै उस पर प्रशन्न हो जाता हुं.जो कुछ भी चढ़ाया जाए वह श्रद्धा पूर्वक चढ़ाया जाए.अश्रद्धा पूर्वक चढ़ायी गयी बहुमूल्य वस्तु भी भगवान को प्रिय नही है।आचार्य पंडित अभिषेक तिवारी ने बताया की देवर्षि नारद के अनुसार दस सुवर्ण के दान और एक आक पुष्प के अर्पण का पुण्य समान होता है।एक हजार आक पुष्प चढ़ाने के बराबर एक कनेर का पुष्प चढ़ाने का फल मिलता है।एक हजार कनेर पुष्प चढ़ाने के बराबर एक बिल्व पत्र होता है।बिल्व पत्र को श्री का पत्र कहा गया है।लक्ष्म्या स्तपत: उत्पन्नं. कहकर इस बृक्ष को लक्ष्मी से उत्पन्न बताया गया है।एक हजार बिल्वपत्र के बराबर एक द्रोण पुष्प.द्रोण पुष्प को गूमा का फूल भी कहा जाता है.यह जंगलो मे पाया जाता है.एक हजार द्रोण पुष्प के बराबर एक चिचिड़ा का पुष्प।

एक हजार चिचिड़ा पुष्प के बराबर एक कुशा का पुष्प।एक हजार कुशा पुष्प के बराबर एक शमी का पत्र और एक हजार शमी पत्र के बराबर एक नीलकमल। एक हजार नीलकमल से बढ़कर एक धतूरा होता है।और एक हजार धतूरा के बराबर एक शमी पुष्प होता है।सभी प्रकार के पुष्पो मे नीलकमल सर्वोत्तम है।बेद ब्यास जी महाराज ने कनेर के पुष्प के बराबर चमेली का.मौलसिरी का.पाटला पाठर के फूल जो लाल रंग का होता है.परंतु एक कठपाटर होता है.पाटला को पाटलि पाठर मोघा काचस्थाली फलेरुहा कृष्ण वृन्ता व कुबेराक्षी के नामो से जाना जाता है.इसी प्रकार नागचम्पा और पुन्नाग के पुष्प को धतूरे के समान बतलाया गया है.भविष्यपुराण मे भगवान शंकर के उपर चढ़ाने योग्य अन्य बहुत से पुष्पो को बतलाया गया है.करबीर मैलसिरी धतूरा पाठर कटेरी कुरैया कास मन्दार अपराजिता शमी का पुष्प कुब्जक शंख पुष्पी चिचिड़ा कमल चमेली नागचम्पा चम्पा खस तगर नागकेशर शीशम द्रोण किंकिरात पलाश बेला जयन्तीगुलर कुसुम्भपुष्प कुटुम अर्थात केशर नीलकमल लालकमल आदि.जल एवम स्थल मे उत्पन्न जितने सुगंधित पुष्प है सब भगवान आशुतोष को पसंद है.भगवान भोले के पूजन मेँ कदम्ब फल्गुपुष्प केवड़ा शिरीष तिन्तड़ी बकुल कैथ गाजर बहेड़ा कपास गंभारी पत्रकण्टक सेमल अनार केतकी कुंद जुही मदन्ती इत्यादि नहीँ चढ़ाना चाहिए.कहीँ कहीँ पूजनीय पुष्पो के अर्पण मे विधि निषेध युक्त बाते भी देखने को मिलती है.जैसे कदम्ब कुसुमै: शुम्भुमुन्मतै:सर्वसिद्धभाक कहकर कदम्ब और धतूरे से पूजन करने की बात बतलाई गई है.परन्तु शिव पूजन मे कदम्ब का निषेध बताया गया है.केवल भादो मास मे कदम्ब एवम चम्पा से शिव पूजन सर्वकामदा होती है.ऐसा देवी पुराण मे लिखा है.जहां विधि निषेध दोनो प्राप्त होता है वहां निर्णय देते हुए बतलाया गया है कि.सायान्हे बकुलं शुभम यानी सायंकाल मे बकुल चढ़ाना अत्यंत शुभ होता है उसके भिन्न समय मे निषेध है.कुन्द पुष्प को भी केवल माघ मास मे चढ़ाने को कहा गया है.अन्य मास मे इसका निषेध है.इस प्रकार उपयुक्त काल विचार के द्वारा पत्र एवं पुष्पो से स्रद्धा पूर्वक किया गया शिवपूजन अत्यन्त कल्याणकारी होगा।