जीवन में अंतिम क्षण तक भी कभी पुरूषार्थ, कर्म, का त्याग नही करना चाहिए-जीयर स्वामी

जीवन में अंतिम क्षण तक भी कभी पुरूषार्थ, कर्म, का त्याग नही करना चाहिए-जीयर स्वामी
घर में बने भोजन को भगवान को भोग लगाकर खाने से तीर्थों के प्रसाद का फल मिलता है
बलिया जनपद के जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के पास आयोजित चातुर्मास व्रत के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को समझाते हुए कहा की भक्ति मार्ग सरल है, सुगम है, सुलभ है, सहज है। इसमें किसी की देने लेने की बात नही है। हम जो भी करते हैं कर्म, व्यवहार को परमात्मा के प्रति भावित करके, समर्पित करके तब उस कर्मों को अपना मानना यही भक्ति योग है। जब सुंदर मकान बनवा कर जब उसमें सोते हैं तो भगवान का नाम लेकर, उनको याद करके सोइए कि भगवान आपने हमें सुंदर मकान दे दिया। मंदिर में दर्शन करने का जो फल है वहीं फल घर में सोने से मिलेगा। घर में जो भोजन बनाते हैं उसमें तुलसी पत्र डाल करके भगवान को भोग लगा करके पाइए आनंद रहेगा। तीर्थों के प्रसाद का जो फल मिलता है वही फल प्राप्त होगा। नया कपड़ा पहनने के समय परमात्मा को याद करते हुए पहनीए। प्रभु आपने दिया। यहीं भक्ति मार्ग है। भक्ति मार्ग में घर परिवार इत्यादि अनेक प्रकार के साधनों को त्यागा नही जाता है। बल्कि वस्तु, व्यवस्था, व्यवहार को परमात्मा में समर्पित किया जाता है।जिसने मुरारी की चर्चा नही किया, अर्चा नही किया, गंगाजल का पान नही किया, गीता का स्वाध्याय नही किया वह व्यक्ति संसार में आकर भी मनुष्य कहलाने का अधिकारी नही है।
मानव को पांच अर्थ जानना चाहिए। सस्वरूप, अपने स्वरूप के बारे में। पुरे दुनिया के स्वरूप के बारे में जानकारी हो गया। परंतु अपने स्वरूप को नही जानते। परस्वरूप, उपायस्वरूप, विरोधी स्वरूप, पुरूषार्थ स्वरूप, में विघ्न बाधा आने के बाद भी अपने कर्तव्य और कर्मों का त्याग नही करना इसी का नाम पुरूषार्थ है। जीवन में अंतिम क्षण तक भी कभी पुरूषार्थ, कर्म, का त्याग नही करना चाहिए। हमारा कर्म जो है वहीं हमारी सफलता, हमारा कर्म हमारा भाग्य प्रारब्ध कारण बनता है। कभी भी पुरूषार्थ का त्याग नही करना चाहिए।