June 25, 2025

सात गो भोजपुरी सवैया-डा०आनंद सिंह

 

चललीं जब ले के परान सहित देहिया के अछोर भइल घटना,
कहवां उ लुकाइ गइल मितवा जवना के लिए कइलीं रटना,
चैता के गरम लुहिया के मतिन भभका के हउल कहलीं—हट ना!
अब का करीं राम मो जाईं कतो कहिया ले करीं दिल्ली पटना ! १

गइले बा केहू उहवां लें जवन मन बुद्धि से पार रहल सब कर।
तूं लगल रहिहे धुन में अपनी थकलो मन से चलिहे दिन भरः
उहवाँ ले तू जोग धियान धरू जहवां मिली बूँद कृपा उन कर –
बहरा से लगी कि खुलल तोहसे खिड़की त खुली भितरे से मगर।२

दुनिया न बसेरा सदा ले रही छोड़ही के परी सबके इकदिन
बन्हहीं के परी गठरी चलके सलटा के तमाम ले काम कठिन
एहि धार में नाव परल मधि में खोजहीं के परी त सहार के तृन
उ बिधान जे ना समझी सुबुधी जल्दी में चली बेवकूफ मतिन। ३

चचिया-ककिया-मउसी-ममिया रेरिया के कहे छोटका बबुआ
अब ना मिलिहें बोलहूं के कहीं मँझली अम्मा, कक्का आ फुआ
होरिया के सबेरे ही उठिके देइ के तोहके दलपुरिया-पुआ
सम्बन्ध के सूत्र हेराइ गइल करी के ‘बाबू खुस रहिहे’ के दुआ। ४

भासा त हमार उहे ह जवन बतिया कहि दे सबके मन कीः
ओहि के अपनाय सिहा गइलीं भासा में चुअल कबिता ननकी,
रोवलीं हम भोज- पुरी में कबो सुतलीं कबो छाँह में गोधन की,
ई त बाद क बात ह दूर कहीं चललीं हम शिक्षा बदे धन की । ५

संसार पुरान ह धीर धरू जल्दी में त ना तनिको बदली!
संघर्ष बिराम ना होई कबो बजते ही रही तसला तसली-
कहनी इहे बा सबकी घर के महतारी-बाबू पगला-पगली,
केकरा के कहीं फरियाइ लिहें घरवे में ह के असली नक़ली ! ६

कबो छंद में बाबू तुहूँ लिखि दे भोजपुरिये के गीत सुधारि के दे
तू पढ़ल करिहे ओहि बोलि में आजु हमार चिरौरी सँवारि के दे
घनी रात अन्हार बहुत हउए ओके जानि के दीठ बिनारि के दे
चलू देख ले किन्तु, न दे सकिहे त इ नाहिं कि गीत बिगारि के दे! ७

-आनन्द कुमार सिंह

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