June 25, 2025

संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का समापन हमारी सोच ही हमारा संसार संस्कृत भाषा संजीवनी भाषा

 

संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का समापन
हमारी सोच ही हमारा संसार
संस्कृत भाषा संजीवनी भाषा

चार धाम में बनें चार वेद धाम
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

वर्ल्ड डे फॉर सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क

ऋषिकेश, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने

परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय अभ्युदय का अनवरत स्रोत विषय पर आयोजित दो दिवसीय संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के समापन अवसर पर सम्बोधित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि ‘‘तन्मे मनः शिवसंकल्प मस्तु।’’ हमारी सोच ही हमारी सृष्टि है। हमारी सोच ही हमारा संसार है, शेष सब विस्तार है इसलिये यहां से संस्कृत और संस्कृति को जागृत और जीवंत बनाने का संकल्प लेकर जायें। संकल्प विचार रूपी एक छोटा सा बीज है परन्तु जब उसे सुरक्षित वातावरण मिलता है तो उसी बीज से वटवृक्ष रूपी पौधा बन जाता है। यहां से संस्कृत भाषा के विस्तार का एक संकल्प लेकर जायें, निश्चित रूप से विलक्षण परिवर्तन होगा।

स्वामी जी ने कहा कि हमारे ऋषियों ने प्रामाणिकता और अनुसंधान के आधार पर संस्कृत भाषा और जीवन मूल्यों का निर्माण किया हैं उन्ही प्रामाणिक अनुसंधानों से भारतीय संस्कृति, संस्कार और साहित्य का प्रादुर्भाव हुआ है। भारतीय साहित्य और संस्कृति से जुड़ कर ही आज की युवा पीढ़ी अपनी जडं़े मजबूत कर सकती है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति समर्पण की संस्कृति है; स्वयं को तलाशने; तराशने तथा स्वयं से वयम् तक जगत से जगदीश तक, आत्मा से परमात्मा तक की यात्रा की संस्कृति है। उन्होंने कहा कि यह समय खुद को पाने का है, स्वयं से स्वयं की खोज करनी है। जीवन का उद्देश्य केवल यह नहीं है कि धन-दौलत और लाभ कमायें बल्कि अपना समय, ऊर्जा और संसाधनों का उपयोग भारतीय संस्कृति के विस्तार में लगाये यही इस दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्देश्य है।

कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार प्रो देवी प्रसाद त्रिपाठी जी ने कहा कि हमारे चारों धामों में चार वेद विद्यालय होने चाहिये तथा उसका प्रमुख केन्द्र ऋषिकेश हो तो संस्कृत भाषा के विस्तार में विलक्षण परिवर्तन होगा।

संगोष्ठी के समापन अवसर पर भारत के विभिन्न प्रांतों से आये संस्कृत के विद्वानों, आचार्यों, शोधार्थियों और छात्रों ने सहभाग कर संस्कृत के उत्थान, वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रूद्राक्ष का माला पहनाकर और रूद्राक्ष का पौधा देकर सभी का अभिनन्दन किया।
इस अवसर पर कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार प्रो देवी प्रसाद त्रिपाठी जी, डा वाजश्रवा आर्य जी, डा जनार्दन कैरवान जी, डा देशबंधु भट्ट जी, मुखेम, डा मृगांक मलासी जी, डा सन्दीप भट्ट जी, डा शक्ति प्रसाद उनियाल जी, हरियाणा से प्रो श्री कर्मवीर सिंह, डा जोरावर सिंह जी, डा मदन शर्मा जी, अलीगढ़ से कृष्ण गोपाल जी, विजेता पण्डित जी, रविन्द्र सिंह चमोली, श्रीनगर से अमित नौटियाल, टिहरी से सुशील, आशीष, भारती तथा नैनीताल, हरिद्वार, अल्मोडा, कर्णप्रयाग, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली आदि अनेक स्थानों से छात्रों ने सहभाग किया।

वल्र्ड डे फॉर सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क के अवसर संदेश दिया कि कार्यस्थलों पर सुरक्षित, कुशल, सकारात्मक और स्वस्थ संस्कृति का निर्माण कर कार्य को और उत्पादक बनाना ही आज के दिन का उद्देश्य है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कार्यस्थलों पर सकारात्मक सुरक्षा और स्वस्थ संस्कृति का निर्माण कर न केवल संबंधित संगठनों को बल्कि पूरे राष्ट्र को प्रगति के पथ पर अग्रसरित किया जा सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि हम सभी की ऐसी कोशिश होनी चाहिये कि हम जहां पर भी कार्य कर रहे हैं वहां का वातावरण हर्ष, उत्कर्ष और विश्वासपूर्ण हो ताकि नई चेतना, श्रेष्ठ विचार, सकारात्मक दृष्टि के साथ उत्तम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
वल्र्ड डे फॉर सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, हमने देखा है कि एक मजबूत और सशक्त प्रणाली का होना कितना आवश्यक है जिसमें सरकारों, नियोक्ताओं, श्रमिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों का होना कितना आवश्यक है। कार्यस्थलों पर एक मजबूत, स्वस्थ और सुरक्षित संस्कृति वह है जिसमें प्रबंधन और कर्मचारियों दोनों के अधिकारों की रक्षा हो।

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