June 20, 2025

डॉ0 राममनोहर लोहिया आजीवन अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे —पूर्व कुलपति प्रोफेसर हरिकेश सिंह

समाजवाद के पुरोधा रहे डॉ0 लोहिया

 

डॉ0 राममनोहर लोहिया आजीवन अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे —पूर्व कुलपति प्रोफेसर हरिकेश सिंह

 

गाजीपुर। सत्यदेव डिग्री कॉलेज ग़ाज़ीपुर में समाजवाद के पुरोधा डॉ राममनोहर लोहिया के जन्मदिन पर एक लघु गोष्ठी सम्पन्न हुई। गोष्ठी में जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय छपरा के पूर्व कुलपति प्रो हरिकेश सिंह ने विस्तार से डॉ लोहिया के संघर्षमय और मेधावी जीवन पर प्रकाश डाला। डॉ॰ राममनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर नामक स्थान में हुआ था। उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे। ढाई वर्ष की आयु में ही उनकी माताजी (चन्दा देवी) का देहान्त हो गया।। उन्हें दादी के अलावा सरयूदेई, (परिवार की नाईन) ने पाला। टंडन पाठशाला में चौथी तक पढ़ाई करने के बाद विश्वेश्वरनाथ हाईस्कूल में दाखिल हुए। उनके पिताजी गांधी जी के अनुयायी थे। जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ। पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। मुंबई के मारवाड़ी स्कूल में पढ़ाई की। बालगंगाधर तिलक की मृत्यु के दिन विद्यालय के लड़कों के साथ 1920 में पहली अगस्त को हड़ताल की। गांधी जी की पुकार पर 10 वर्ष की आयु में स्कूल त्याग दिया। पिताजी को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन के चलते सजा हुई। 1921 में फैजाबाद किसान आंदोलन के दौरान जवाहरलाल नेहरू से भेंट हुई। कॉलेज के दिनों से ही खद्दर पहनना शुरू कर दिया था। 1927 में इंटर पास किया तथा आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता जाकर ताराचंद दत्त स्ट्रीट पर स्थित पोद्दार छात्र हॉस्टल में रहने लगे। उन्होंने डॉ लोहिया की उच्च शिक्षा का उल्लेख करते हुए कहा कि डॉ लोहिया ब्रिटेन में शोध करना चाहते थे । 1930 जुलाई को लोहिया अग्रवाल समाज के कोष से पढ़ाई के लिए इंग्लैंड रवाना हुए। वहां जाने पर उन्हें हेराल्ड लास्की ने समझाया कि यहाँ ब्रिटेन शासित देश के शोधार्थी के साथ रंगभेद की घटना घटित हो सकती है। बेहतर होगा कि वो स्वतंत्रता और सम्मान की सुरक्षा करते हुए जर्मनी जाएँ। डॉ लोहिया ने उनकी बात मान ली। वो जर्मनी गए और विश्वविद्यालय के नियम के अनुसार उन्होंने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो॰ बर्नर जेम्बार्ट को अपना प्राध्यापक चुना। 3 महीने में जर्मन सीखी । 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने दांडी यात्रा प्रारंभ की। जब नमक कानून तोड़ा गया तब पुलिस अत्याचार से पीड़ित होकर लोहिया जी के पिता हीरालाल जी ने लोहिया को विस्तृत पत्र लिखा। 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी दिए जाने के विरोध में लीग ऑफ नेशंस की बैठक में बर्लिन में पहुंचकर सीटी बजाकर दर्शक दीर्घा से विरोध प्रकट किया। सभागृह से उन्हें निकाल दिया गया। 1932 में नमक सत्याग्रह विषय पर डॉ लोहिया ने अपना शोध प्रबंध लिखा था। 1933 में डॉ लोहिया भारत लौटे और महात्मा गांधी से जुड़ते चले गए। 1934 में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ और डॉ लोहिया इसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए। सन् 1942 में प्रयागराज में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जहां लोहिया ने खुलकर नेहरू का विरोध किया। लोहिया जी के द्वारा दुनिया की सभी सरकारों को नई दुनिया की बुनियाद बनाने की योजना की कल्पना गांधी जी के सामने रखी गई, जिसमें एक देश की दूसरे देश में जो पूंजी लगी है उसे जब्त करना, सभी लोगों को संसार में कहीं भी आने-जाने व बसने का अधिकार देना, दुनिया के सभी राष्ट्रों को राजनैतिक आजादी तथा विश्व नागरिकता की बात कही गई थी। गांधी जी ने इसे हरिजन में छापा। गोवा मुक्ति आंदोलन के सूत्रधार डॉ लोहिया ही थे। उन्होंने दाम बांधो, हिमालय बचाओ, भाषा नीति (अंग्रेज़ी हटाओ), नदियों को जोड़ो, सिविल नाफरमानी, महिला आज़ादी की वकालत की। 1962 में चुनाव हुआ लोहिया नेहरू के विरुद्ध फूलपुर चुनाव मैदान में उतरे। 11 नवम्बर 1962 को कलकत्ता में सभा कर लोहिया ने तिब्बत के सवाल को उठाया। 1963 के फर्रूखाबाद के लोकसभा उपचुनाव में लोहिया 58 हजार मतों से चुनाव जीते। लोकसभा में लोहिया की तीन आना बनाम पन्द्रह आना की बहस अत्यंत चर्चित रही, जिसमें उन्होंने 18 करोड़ आबादी के चार आने पर जिंदगी काटने तथा प्रधानमंत्री पर 25 हजार रुपए प्रतिदिन खर्च करने का आरोप लगाया। 9 अगस्त 1965 को लोहिया को भारत सुरक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया। स्वतंत्र भारत में इतनी बार गिरफ़्तारी किसी बड़े नेता की नहीं हुई। लोहिया के समाजवादी आंदोलन की संकल्पना के मूल में अनिवार्यत: विचार और कर्म की एकता थी- आजन्म उन्होंने ‘कर्म और विचार’ की इस एकता को अपने आचरण से सिद्ध किया। लोहिया अनेक सिद्धान्तों, कार्यक्रमों और क्रांतियों के जनक हैं। वे सभी अन्यायों के विरुद्ध एक साथ जेहाद बोलने के पक्षपाती थे। उन्होंने एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया।

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