June 21, 2025

गाजीपुर में बुढ़िया माई का है ऐसा चमत्कारी मंदिर, जहां दर्शन मात्र से ठीक हो जाते हैं लकवा के मरीज

 

गाजीपुर में बुढ़िया माई का है ऐसा चमत्कारी मंदिर, जहां दर्शन मात्र से ठीक हो जाते हैं लकवा के मरीज

गाजीपुर के भुड़कुड़ा थाना इलाके में स्थित सिद्धपीठ हथियाराम मठ है जहां पर साधु संतों द्वारा तकरीबन 900 साल से पहले बनाई गई मिट्टी की मुर्ति आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है.

नवरात्र के पवित्र माह में मां के अलग अलग रूपों का लोग अपनी श्रद्धा और आस्था के अनुसार पूजा अर्चना करते है और मां से मन्नते मांगते हैं. गाजीपुर में भी बहुत सारे देवी मंदिर है. उन्हीं देवी मंदिरों में एक सिद्धपीठ हथियाराम मठ स्थित बुढ़िया माई का मंदिर है जो तकरीबन 900 साल पहले साधु संतों के द्वारा मिट्टी की मुर्ति बना कर शुरू की गई पूजा अर्चना आज भी बदस्तुर जारी है. मिट्टी से बनी बुढ़िया माई को मां दुर्गा का ही रूप बताते है. जानकारों की माने तो इस मंदिर का संबंध दक्षिण भारत के तिरूपति बाला जी मंदिर से तालुकात बताया जाता है. साथ ही मां की ऐसी महिमा है कि यहां पर लकवा के आए मरीज बिना किसी इलाज के ही दर्शन मात्र से ठीक होकर सकुशल वापस अपने घर को खुशी खुशी जाते है.

लड़खड़ाते हुए आते हैं लकवा के मरीज

गाजीपुर के भुड़कुड़ा थाना इलाके में स्थित सिद्धपीठ हथियाराम मठ है जहां पर साधु संतों द्वारा तकरीबन 900 साल से पहले बनाई गई मिट्टी की मुर्ति आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां पर भक्त दुर दराज से दर्शन करने के लिए आते हैं. इस मठ की सबसे खास बात यह है कि मठ में साधु संतों द्वारा मिट्टी से बनाई गई मां की मुर्ति है, जो बुढ़िया माई के नाम से जानी जाती है. बुढिया माई का चमात्कार भी देखने को मिलता है. यहां पर जो भी लकवा के मरीज श्रद्धा भाव से पहुंचते है. मां उनकी मुराद दर्शन मात्र से पूरी करती हैं. लकवा का मरीज लड़खड़ाते हुए आता है और हंसी खुशी यहां से अपने घर को लौट जाता है. ये बातें क्षेत्र की जनता के साथ सिद्धपीठ के महामंडलेश्वर भवानी नंदन यती भी बताते है.

तिरूपति बालाजी से है यह संबंध

वहीं, महामंडलेश्वर भवानी नंदन यति ने बताया कि दक्षिण में जो तिरूपति बालाजी का मंदिर है वो भी हथियाराम मठ के अंदर है और आज जहां मैं हूं वो भी हथियाराम मठ है. तिरूपति बाला जी का मतलब बताते हुए महामंडलेश्वर ने कहा कि तिरू मतलब लक्ष्मी और पति मतलब नारायण है तो दक्षिण में भी लोग लक्ष्मी नारायण की पूजा करते हैं और यहां पर भी लक्ष्मी नारायण की ही पूजा होती है.

वहां के संत से मेरी भी मुलाकात होती है तो बातचीत के दौरान वहां के किताबों में भी मिलता है कि उत्तर प्रदेश से हमारे आदि गुरू तिरूपति बाला जी पहुंचे थे, लेकिन यहां से दक्षिण में तिरूपति बाला जी है जो हजारों किलोमीटर दूर है. आपसी संबंधों में या परस्पर संवाद न होने के कारण आज लगता है कि वो अलग हैं और हम अलग हैं.

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