प्रकृति के संग उत्सव मनाने का पर्व है होली
प्रकृति के संग उत्सव मनाने का पर्व है होली
बसन्त के मध्य में जब हर ओर हरियाली पसरी हो, खेतों में फसलें अन्न का भंडार लिए पकने को तैयार खड़ी हों, जब हवा अपने साथ फूलों, मंजरियों का सुगन्ध लिए बह रही हों, और जब हर काम से निश्चिन्त किसान के ऊपर से कुछ दिन के लिए काम का दबाव कम हो जाय, तो मन होली मनाने को मचलेगा ही कृषि आधारित भारतीय परम्परा में होली बस इसी उत्साह का नाम है।
भारतीय परम्पराओं का मूल सौंदर्य यही है कि यहाँ पर्व प्रकृति के निर्देशानुसार मनाए जाते हैं जब प्रकृति फूलों के रङ्ग से सराबोर होती है, तो मानुस भी फूलों से वह रङ्ग ले कर एक दूसरे को रंगने लगता है तन के साथ साथ मन भी रंग जाता है और हो जाती है होली।
फागुन के महीने में खेतों से निकलिये तो गेंहू की बालियां महकती हैं आम के बगीचे से निकलिये तो महकती हैं मंजरियाँ, महकते हैं फूल, महकते हैं नए पत्ते… फिर मानुस का मन क्यों न महके भला?
होली वर्ष भर में मिली नकारात्मकता को समाप्त कर जीवन मे एक सकारात्मक शुरुआत करने का त्योहार है इस दिन साल भर के सारे राग-द्वेष मिटा कर, दूर हुए अपनों को पुनः गले लागने की परम्परा रही है यही होली का मूल भाव भी है।
होलिका प्रह्लाद की कथा क्या बताती है? होलिका को प्रह्लाद के ईश्वर पसन्द नहीं थे, सो उसे उनकी भक्ति भी पसन्द नहीं थी और इसी कारण हिरण्यकश्यप और होलिका बार बार उन्हें मारने और उनकी भक्ति धारा को समाप्त करने का प्रयास करते थे। यह प्रयास केवल तब ही नहीं हुआ था, अब भी होता है ईश्वर का स्वरूप या पूजन पद्धति पसन्द नहीं आने पर एक पूरी संस्कृति को समाप्त कर देने के षड्यंत्र अब भी होते हैं पर यह षड्यंत्र न तब सफल हुआ था, न अब सफल होता है, बल्कि यह षड्यंत्र कभी सफल नहीं होगा ईश्वर प्रह्लाद के साथ रहे और होलिका अपने ही षड्यंत्र की अग्नि में जल मरी मन ईश्वर के प्रति निष्ठावान है तो तन की यात्रा प्रभावित नहीं होगी।
होली की कथा सनातन के हर देव से जुड़ती है महादेव महाश्मशान में भष्म से होली खेलते हैं, और ऐसे खेलते हैं कि सदियों से गाया जाता रहा- खेलें मसाने में होरी दिगम्बर खेलें मसाने में होरी… राम अवध में खेलते रहे, और ऐसी होली मनाई की हम अब भी गाते हैं- होली खेले रघुबीरा अवध में होली खेले रघुबीरा… और कृष्ण? उन्होंने तो गोकुल में वह होली मनाई कि होली को अपने नाम कर लिया फाग के नब्बे फीसदी पारम्परिक गीत कृष्ण के गाये जाते हैं होली में फाग गाते सनातन जन सीधे अपने आराध्यों से जुड़ जाते हैं।
आधुनिकता के नशे ने होली का स्वरूप तनिक बिगाड़ दिया है, पर आत्मा अभी भी वही है होली अब भी बिछड़े दिलों को जोड़ने आती है। तो जो भी संगी किसी कारण से छूट गया हो, दूर हो गया हो, उसे आगे बढ़ कर गले लगा लेना ही होली की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी सो बढ़िए आगे, क्योंकि साल भर की भागदौड़ में कुछ अपनों से दूरी तो बनी ही होगी