पांच दुर्गुण मनुष्य को कर देता है बर्बाद – जीयर स्वामी जी
पांच दुर्गुण मनुष्य को कर देता है बर्बाद – जीयर स्वामी जी
कृष्ण भगवान ने अपने परिवार के लोगों को, विश्व के लोगों को राष्ट्र संदेश के नाम से समझाया था। इस संदेश को कलियुग में आज से हजार वर्ष पहले भगवतपाद श्री रामानुजाचार्य स्वामी जी महाराज ने भक्ति के माध्यम से पूरे मानव मात्र को, पूरे विश्व को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य को लेकर भगवान श्री कृष्ण के संदेश को आत्मसंतोष कराना चाहते थे। शायद भगवान के परिवारों ने, विश्व के लोगों ने भगवान श्री कृष्ण के संदेशों को अपने जीवन के आचरण में उतारने से कृपणता कर दिया था। जिसका परिणाम यह हुआ कि भगवान श्री कृष्ण का परिवार बर्बाद हो गया। उक्त बातें
राजपुर प्रखंड अंतर्गत खरवनिया गांव में भारत के महान मनीषी सन्त विश्ववंद्य जगदाचार्य श्रीमद विश्वसक्सेनाचार्य परमपूज्य श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज के सानिध्य में श्री भाष्यकार भगवत्पाद रामानुजाचार्य सहस्त्राब्दी (1000) जयन्ती स्मृति- महामहोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण के उन्हीं संदेशों को भगवततपाद शेषाअवतार श्री रामानुजाचार्य स्वामी जी महाराज इस धरा धाम पर आए व भक्ति व प्रपति मार्ग द्वारा मानव मात्र को जोड़ने का जो काम किए वह ऐसा देखा व सुना जाता है। श्री रामानुजाचार्य स्वामी जी महाराज के संदेशों को कहते हुए श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि मानव जीवन में चार साधन हो जाए तथा एक साधन को समेटा व बांधा नहीं जाय, संवारा नहीं जाय तो चारों साधन बोझ बन जाते है, और चारों साधन में एक साधन और हो जाए तो वह साधन मानव जीवन के लिए उपहार बन जाता है। चार साधनों के बारे में जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रद्धालुओं को बताया कि शराब की नशा, वेश्यावृत्ति की, नशाखोरी की नशा, हिंसा की नशा, कोर्ट कचहरी के चक्कर, अगर पांच दुर्गुण मनुष्य में आ जाता है तो पांचों दुर्गुण आने पर कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो उसके भटकने व बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता है। यह पांच दुर्गुण कब आता है जब चार साधन आ जाते है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के पास धन हो जाए, बल हो जाए, पद हो जाए, रूप वैभव ऐश्वर्य हो जाए तथा उसके साथ विवेक न हो तो सभी साधन अनर्थ करा देता है। वहीं पांच दुर्गुण आ जाने से विवेक भी भ्रष्ट हो जाता है। विवेक भ्रष्ट न हो इसके उपाय को बताते हुए कहा कि इसके लिए 7 सूत्रों को अपने जीवन में उतारना पड़ता है।
7 सूत्रों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उठन बैठन रहन-सहन पवित्र व बढ़िया होनी चाहिए, अपनी मन, वाणी व शरीर से प्राणियों की अनिष्ट की भावना नहीं करनी चाहिए, अकारण किसी पर क्रोध नहीं करनी चाहिए लेकिन अगर कोई गलत मार्ग पर जा रहा है तो चुप लगाने से वह गलत मार्गों में और चला जाता है। चौथा इंद्रियों को जीतने वाला होना चाहिए , इंद्रिया अगर खानपान, उठन बैठन में भटक रही हो तो उस पर भी संयमित होना चाहिए। भोजन की शुद्धता होनी चाहिए, व्यवहार की शुद्धता होनी चाहिए व सातवां संग भी शुद्ध होनी चाहिए। तभी मनुष्य अपने जीवन में भटकने बर्बाद होने से बच सकता है।