अधर्म व अनीति के वृक्ष पर लटका पाप रूपी फल का स्वाद अच्छा नहीं होता : जीयर स्वामी
अधर्म व अनीति के वृक्ष पर लटका पाप रूपी
फल का स्वाद अच्छा नहीं होता : जीयर स्वामी
मानव जीवन में धन भी हो जाए, बल भी हो जाए, पद भी हो जाए, रूप व वैभव भी हो जाए तो इसका उपयोग विवेक से करना चाहिए। अगर विवेक से धन का, बल का, पद का, रूप – वैभव का, ऐश्वर्य का उपयोग नहीं किया जाता है तो वह धन, बल, पद, रूप, वैभव, ऐश्वर्य कहीं न कहीं अनर्थ करा देता है।
उक्त बातें श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने खरवनिया गांव में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान प्रवचन में कही। अपने प्रवचन में जीयर स्वामी जी महाराज ने लंकेश का उदाहरण देते हुए कहा कि रावण से धन किसी के पास अधिक नहीं था, उसके उससे अधिक बल किसी के पास नहीं था, उसके पास ऐश्वर्य भी था। लेकिन विवेक से धन, बल, पद ऐश्वर्य का उपयोग नहीं किया तो उसका कोई अपना इतिहास नहीं रहा। पद, धन, बल, रूप ऐश्वर्य में लंकेश किसी से कम नहीं था। लेकिन पद, धन, बल, रूप ऐश्वर्य का भी उपयोग उसने विवेक से नहीं किया। इसलिए मानव जीवन में धन हो, बल हो, पद हो, रूप व वैभव ऐश्वर्य हो तो इसका विवेक उपयोग से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनीति व अधर्म के द्वारा जीवन जीने वाले लोगों का जीवन कभी भी सुखमय नहीं होता है । अनीति व अधर्म के वृक्ष पर पाप का लटका हुआ फल रुपी सुख का स्वाद जीवन में अच्छा नहीं होता है। जबकि कुछ दिनों तक अनीति व अधर्म से अर्जित किए गए धन से घर परिवार समाज चहल-पहल व हरा भरा हो ही जाए। लेकिन उसका फल अच्छा नहीं होता है। उसका फल उसके वंश व परिवार को भुगतना पड़ता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए अधिक से अधिक 30 वर्ष के अंदर, उससे कम 3 वर्ष के अंदर, उससे कम 3 महीना के अंदर या 3 दिनों के अंदर जो हमारे द्वारा अच्छा या बुरा कर्म किया जाता है उसका फल मिल ही जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि बड़े-बड़े लोग अनीति व अधर्म करके धन तो कमा लेते है। लेकिन सब कुछ करने के बाद भी उनको सुखचैन नहीं मिलता है। उन्हें किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ता है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से हमारे द्वारा किए हुए सभी कर्मों का फल शुभ व अशुभ के रूप में प्राप्त होता है। कभी भी मानव जीवन में किसी को दान दिए हो तो दान दिए हुए संपत्ति को या दूसरी की संपत्ति को हड़पने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।