June 20, 2025

किसान अन्दोलन के जनक स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की 133वीं जयंती शिवाजीनगर मे मनायी गयी

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वन्देअन्नदातारम् का मंत्र दुनिया को देने वाले, किसान को भगवान का स्वरूप मानकर किसान किसान हित मे आजीवन सृजनात्मक एवं संघर्षनात्मक कार्य को ही साधना मानते थे स्वामी सहजानंद सरस्वती – विनय शंकर राय।

दिनांक 22 फरवरी 2022 को सायं 4 बजे से स्वामी सहजानन्द विचार मंच के तत्वाधान मे शिवाजीनगर उद्यान नं. 2 मे संगठित किसान अन्दोलन के जनक स्वामी सहजानंद सरस्वती जी की 133वीं जयंती स्वामी सहजानंद विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक किसान नेता विनय शंकर राय “मुन्ना” की अध्यक्षता मे माल्यार्पण कर एवं पुष्पांजलि अर्पित कर मनाई गयी । विनय शंकर राय ने कहा कि स्वामी सहजानन्द सरस्वती जी अथक परिश्रमी, वेदान्त और मीमांसा के महान विद्वान , बेबाक पत्रकार एवं लेखक के साथ साथ संगठित किसान आंदोलन के जनक एवं संचालक थे।

 

स्वामीजी का जन्म उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में 22 फरवरी 1889 को हुआ था। बचपन के दौरान हीं उनका मन आध्यात्म में रमने लगा। दीक्षा को लेकर उनके बालमन में धर्म की इस विकृति के खिलाफ़ विद्रोह पनपा। धर्म के अंधानुकरण के खिलाफ उनके मन में जो भावना पली थी कालांतर में उसने सनातनी मूल्यों के प्रति उनकी आस्था को और गहरा किया।

 

सन् 1907 में इन्होंने काशी जाकर स्वामी अच्युतानन्द जी से विधिपूर्वक दशनामी दीक्षा लेकर नौरंग राय से स्वामी सहजानन्द सरस्वती हो गये। विनय राय ने कहा कि स्वामी जी अन्नदाता किसान को धरती का साक्षात भगवान मानते थे इसी लिये उन्होने वन्देअन्नदातारम् का नारा देकर किसान हित मे सृजनात्मक एवं संघर्षनात्मक कार्य को ही साधना मानकर आजीवन संघर्ष करते रहे ।

संचालन करते हुये स्वामी सहजानन्द विचार मंच के सहसंयोजक के नीरज सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ असहयोग आंदोलन बिहार में गति पकड़ा तो स्वामी सहजानंद जी उसके केन्द्र में थे। उन्होंने घुम घुमकर अंग्रेजी राज के खिलाफ़ किसानो मजदूरो को खड़ा किया। जब वह जनता से मिल रहें थे तो उन्होंने देखा देश में किसानों की हालत गुलामों से भी बदतर है। स्वामी सहजानन्द जी का मन एक बार फिर नये संघर्ष की ओर उन्मुख होता है। स्वामी जी किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ डट जाने का स्वभाव रखते थे। गिरे हुए को उठाना अपना प्रधान कर्तव्य मानते थे। दण्डी संन्यासी होने के बावजूद सहजानंद ने रोटी को हीं भगवान कहा और किसानों को भगवान से बढ़कर बताया। स्वामीजी ने नारा दिया था- “जो अन्न वस्त्र उपजाएगा,अब सो कानून बनायेगा।ये भारतवर्ष उसी का है,अब शासन वहीं चलायेगा।”अपने स्वजातीय जमींदारों के खिलाफ भी उन्होंने आंदोलन का शंखनाद किया।

सचमुच जो श्रेष्ठ होते हैं वे जाति, धर्म, सम्प्रदाय और लैंगिक भेद-भाव से ऊपर होते हैं। हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में रहते हुए उन्होंने एक पुस्तक लिखी- “किसान क्या करें” इस पुस्तक में अलग-अलग शीर्षक से सात अध्याय हैं- 1. खाना-पीना सीखें, 2. आदमी की जिंदगी जीना सीखें, 3. हिसाब करें और हिसाब मांगें, 4. डरना छोड दें, 5. लडें और लडना सीखें, 6. भाग्य और भगवान पर मत भूलें और 7. वर्गचेतना प्राप्त करें। किसानों को शोषण मुक्त करने और जमींदारी प्रथा के खिलाफ़ लड़ाई लड़ते हुए स्वामी जी 26 जून 1950 को पंचतत्व में विलीन हो गयें। उनके निधन के साथ ही भारतीय किसान आन्दोलन का सूर्य अस्त हो गया। उनके निधन पर दिनकर जी ने कहा था आज दलितों का सन्यासी चला गया।आज स्वामी सहजानन्द जी जैसा निर्भीक तथा अथक परिश्रमी नेता दूर-दूर तक नहीं है।
श्रद्धान्जली समारोह की अध्यक्षता विनय शंकर राय “मुन्ना”, संचालन नीरज सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन मोहम्मद अकरम ने किया , प्रमूख रूप से सत्येंद्र सिंह , साकेत शुक्ला, मनोज सिंह, कृपा शंकर राय, , पप्पू शुक्ला, मेवा पटेल, विकास राय, राहुल सिंह, नीतिन मिश्रा, मंगेश राय, मनीष सिंह, हर्ष शर्मा सहित इत्यादि लोग स्वामी जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धान्जली अर्पित किये एवं विचार व्यक्त किये।

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