जेल में बंद अरूण नेता के सियासी प्लान से मची खलबली

जेल में बंद अरूण नेता के सियासी प्लान से मची खलबली
अरूण सिंह के सियासी फैसले से सपा भाजपा की डूबेगी नैया
सदर विस से निर्दल चुनाव लड़कर भाजपा को देंगे चुनौती
17 को अरूण सिंह के प्रतिनिधि दाखिल करेंगे नामांकन पत्र
वर्ष 2014 में टिकट मिला होता तो अरूण बन जाते सांसद
टिकट कटने पर मनोज सिन्हा के खिलाफ लड़ा था चुनाव
गाजीपुर। पीजी कालेज में छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले अरूण सिंह ने हार के बाद भी अपने हौसलों को बनाए रखा। तभी तो जेल में बंद होने के बाद वह 17 फरवरी को भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। अरूण नेता के चुनाव लड़ने की घोषणा से भाजपा में एक तरह से खलबली मची हुई है।
कारण यह है कि अरूण नेता का हर दल और हर समाज में अच्छा खासा प्रभाव है। वह चुनाव लड़े तो करीब चालीस हजार से अधिक वोट इधर से उधर होगा, जो कई सुरमाओं का सियासी भविष्य बना और बिगाड़ सकता है।
करंडा थाना क्षेत्र के नारी पचदेवरा गांव निवासी अरूण सिंह शुरू से ही जुझारू तेवर के थे। उन्हें युवाओं का नेता कहा जाता था। उन्होंने 1982 और 1983 में पीजी कालेज में दाखिला के बाद वह पहली बार छात्र संघ अध्यक्ष रहे। तभी से उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई। उन्होंने दो बार पीजी कालेज के अध्यक्ष पद को शोभित किया।
छात्र राजनीति के बाद वह कांग्रेस पार्टी के सांसद जैनुल बशर के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हुए और 1992 में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे। फिर 1994 में कांग्रेस के प्रदेश मंत्री रहे। वर्ष 1995 में जिला पंचायत सदस्य पद पर करंडा तृतीय से विजयी हुए थे। इसके बाद 1998 में जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन बने। दूसरी बार भी वह चेयरमैन रहे। इसके बाद तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह ने उन्हें लखनऊ में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कराई। 2014 तक वह भाजपा में रहे।
इसके बाद वह भाजपा के खिलाफ मुखर हो गए। उनके सियासी सफरनामे पर गौर किया जाए तो वह वर्ष 2002 में जमानियां विधानसभा से चुनाव लड़े और 42091 वोट पाए थे। जबकि सपा से कैलाश यादव 50379 मत पाकर चुनाव जीते थे। 2007 में जमानियां विधानसभा से एक बार फिर अरूण सिंह चुनाव लड़े। इस बार उनका आमना सामना राजकुमार गौतम से हुआ। जिसमें 40208 वोट अरूण सिंह पाए थे। यहां पर 42408 वोट से बसपा प्रत्याशी राजकुमार गौतम चुनाव जीते गए। 2012 में अरूण सिंह सदर विधानसभा चले आए। क्योंकि जमानियां के अधिकांश गांव सदर में आ चुके थे। इसमें अरूण सिंह का गांव नारी पचदेवरा भी शामिल था।
सदर विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बसपा के राजकुमार गौतम से भाजपा के अरूण सिंह का आमना सामना हो गया। जब चुनाव परिणाम आए तो अरूण सिंह को 41567 वोट मिले। जबकि दूसरे नंबर रहे बसपा के राजकुमार को 49320 वोट मिले थे। यहां पर सपा के विजय मिश्रा 49561 वोट प्राप्त करके 241 वोट से विजयी घोषित हुए। लगातार भाजपा से मिल रही करारी शिकस्त के बाद भी अरूण सिंह के चेहरे पर तनिक भी सिकन नहीं आई थी। उस समय भाजपा के सितारे गर्दिश में चले गए थे। सिर्फ सपा और बसपा के ही झंडे दिखाई देते थे।
उस समय भी अरूण सिंह की लोकप्रियता गरीबों एवं मजलुमों में कम नहीं थी। तब तक 2014 के लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर माहौल था। उस समय नरेंद्र मोदी को भाजपा ने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था।
मनोज सिन्हा अरूण की कर रहे थे पैरवी
दो बार के लोकसभा चुनाव जीते पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा भी 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। चर्चाओं की मानें तो अरूण सिंह को टिकट दिलाने के लिए वह उन्हें दिल्ली भी लेकर गए थे। तब तक दिल्ली पहुंचने से पहले ही अरूण सिंह के साथ खेला हो गया और मनोज सिन्हा को भाजपा ने गाजीपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर दी दिया था। अरूण सिंह का टिकट कटने के कारण उनके समर्थक बेहद खफा थे। दिल्ली से लौटने के बाद अरूण सिंह अपने समर्थकों संग बैठक किए। उस समय यह मांग उठी कि अरूण सिंह चुनाव लड़ें। क्योंकि उन्हें ही पार्टी लोकसभा का टिकट देना चाहती थी। लेकिन मनोज सिन्हा को टिकट मिल गया। कारण यह था कि 2009 में मनोज सिन्हा बलिया चले गए थे। तब अरूण सिंह ने ही जिले में मोर्चा संभाला था और सत्ताधारी दल से लड़ते रहे। खैर छोड़िए! अरूण सिंह निर्दल चुनाव लड़े, मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उस समय उन्हें 40 हजार वोट मिले थे। अरूण को मनाने के लिए कई बार मनोज सिन्हा ने प्रयास किया। मगर वह नहीं मानें। उन्हें यह लगा कि उनके साथ साजिश हुई है। जानकार बताते हैं कि अगर अरूण सिंह को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया होता तो वह भी जीतकर मोदी सरकार के हिस्सा बनते।
वर्ष 2016 से बंद हैं जेल में
ग्रहों की चाल ने अरूण नेता को इस कदर उलझाया कि वर्ष 2016 में वाराणसी में करंडा ब्लाक के सुआपुर गांव निवासी अमरनाथ यादव की हत्या हो जाती है। इस हत्या में अमरनाथ के परिजनों ने अरूण को मुल्जिम बनाकर उनका सियासी कैरियर एक तरह से समाप्त करने की कोशिश की। मगर धुन के पक्के और अपनों के लिए जीने मरने वाले अरूण ने कभी हार नहीं मानीं। जेल में बंद होने के बाद भी वह अपनों से मिलते जुलते रहे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोजाना उनसे मिलने वालों का नैनी जेल में तांता लगा रहता है। अब 2022 का विधानसभा चुनाव सामने आ चुका है। उनके प्रतिनिधि गौतम मुनि मिश्रा की मानें तो 17 फरवरी को सदर विधानसभा से अपना नामांकन अरूण सिंह दाखिल करेंगे। वह जेल में रहकर ही विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे।
पिछड़ों में है जनाधार
जानकार बताते हैं कि आज भी अरूण नेता का जनाधार बिंद, मल्लाह, राजपूत एवं ब्राम्हणों के साथ ही नगर के वैश्य बिरादरी में जबदस्त है। यही नहीं नगर के कई हजार मुस्लिम भी अरूण को अपना नेता मानते हैं। अगर अरूण ने तबीयत से चुनाव लड़ दिया तो भाजपा की यह सीट भंवर में फंस सकती है।