June 19, 2025

*यहां इंसाफ होता ही नहीं दिखता भी है*

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*यहां इंसाफ होता ही नहीं दिखता भी है*

*कुछ ऐसा है जो सुभाष चन्द्र दुबे को एक अलग पहचान दिलाती है*

वाराणसी-न्याय के मंदिर में सबकी आस पूरी नहीं होती।इस पर किसी का वश भी नहीं है।ये
कार्यवाही का हिस्सा होता है। प्राकृत न्याय तो ऊपर वाले के अधीन माना जाता है। लेकिन न्याय के अधिकार उसके पहरूओं के हिस्से में होता है।
पर ये शिकायत आम है कि मुझे इंसाफ नहीं मिला।रसूखदार उसे अपनी अंकशायिनी बना ले गये।जिसका दम नहीं था उसका दम निकल गया।यह लोगों की गलतफहमी है की इंसाफ मजबूत और गवाही जुटाने वालों को मिलता है।लेकिन अगर कोई ऐसा पहरूआ हो जो इंसाफ करने पर दिल से आमादा हो तो कैसा हो।
उम्मीद की रोशनी ज्वाइंट सी पी सुभाष चन्द्र दुबे के मुकाबिल आने पर नजर आने लगती है।न्याय होना ही नहीं चाहिए न्याय होते दिखना चाहिए।इसे इंसाफ को मिलना माना गया है।यह आपको वाराणसी में ज्वाइंट सी पी के आफिस में होता दिख जायेगा।उनकी कार्यशैली अलग क्यों है.इसके लिए सुभाष चन्द्र दुबे की सोच से जान सकते हैं।पुलिस सुधार पर बडी चर्चा और बहस इस देश में होता रहा है।पर यह अब तक यह साकार नहीं हो सका.कानून के कई मुहाफिज इसके लिए कोसे भी जाते हैं।
ज्वाइंट सी पी अपने कार्यशैली. व्यवहार के कारण इस इस ओर चलते नजर आते हैं।वह इंसाफ होते हुए देखने वालों में है और यही वजह है की त्वरित फैसले लेते है।वाराणसी स्थित कमिश्नरेट आफिस जायेंगे तो समझ में आयेगा की यहां का माहौल विल्कुल अलग है।जो भी फरियादी यहां न्याय के लिए आता है उसके वाजिब व्यवहार होता है।इंसाफ की डगर पर कोई बडा छोटा नहीं होता है।
वाराणसी के कचहरी स्थित मुख्य कार्यालय में दो घंटे जनता सुनवाई के दौरान सुभाष चन्द्र दुबे एक अलग अंदाज में दिख जायेंगे।

कैसे सुनवाई के दौरान एक हाथ में फोन दूसरे हाथ में प्रार्थना पत्र फिर संबंधित थाने में ज्वाइंट सी पी के कार्यालय की घंटी घनघनाने लगती है।मामले की निष्पक्ष जांच कर कारवाई करें.यह मामला पहले भी आ चुका है।इसमें क्या अपडेट है।इतना ही नहीं सम्बंधित शिकायत की जानकारी पी आर ओ साहब को अपडेट करायें।इतने कमांड संबंधित थाने के एक्शन में आने के लिए बाध्य कर देते है।

*कार्यशैली ज्वाइंट सी पी सुभाष चन्द्र दुबे की*
एक हाथ में फोन दूसरे में प्रार्थना पत्र.फिर कारवाई का निर्देश

*समस्याओं के समाधान के लिए मामले की तह तक जाना जरूरी*

कहते हैं कि समस्याओं से रूबरू आप तब होंगे जब जमीनी हकीकत को जानने की कोशिश करेंगे, ये तब संभव है जब आप ग्राउंड जीरो पर काम करेंगे। शायद इसका एहसास तब होगा जब आप सीधे लोगों से मिलेंगे। बातचीत के दौरान सुभाष चंद्र दुबे ने इतना ही कहा कि एक पुलिस अधिकारी से आमजन को जो उम्मीद होनी चाहिए, उसका निर्वहन कर रहा हूं। मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की क्रांतिकारी लाइनें फिर जीवित हो जाती हैं कि ‘ओ जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है। गर इनसाफ कोई शै है तो होता नजर आना भी जरूरी है।

*महिलाओं के मामले में कार्रवाई सुनिश्चित*

ज्वाइंट सीपी का कार्यालय महिलाओं के मामले में जीरो टॉलरेस पर काम कर रहा है। ज्वाइट सीपी के पास ऐसे मामले हैं जो महिलाओं की अस्मिता से जुड़े हो, छेड़खानी हो या महिला साकार सुरक्षा सम्मान से, इस पर न केवल सुनवाई बल्कि त्वरित इसके कार्रवाई का आदेश दिया जाता है।

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