June 20, 2025

*दण्डी स्वामी विमलानंद सरस्वती जी महाराज के जन्म शताब्दी वर्ष समारोह का हुआ भव्य आयोजन*

*दण्डी स्वामी विमलानंद सरस्वती जी महाराज के जन्म शताब्दी वर्ष समारोह का हुआ भव्य आयोजन*

वाराणसी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, भोजपुरी साहित्य के भीष्म पितामह, श्री १०८ ब्रह्मलीन श्री दण्डी स्वामी विमलानन्द सरस्वती जी महाराज के जन्म शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन शिवाला घाट स्थित राजगुरु मठ में किया गया। यह आयोजन श्री १०८ दण्डी स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती जी महाराज, पीठाधीश्वर, राजगुरु मठ के मार्गदर्शन एवं संरक्षण में किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्वलन एवं स्वामी विमलानन्द सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण कर के किया गया।

इस महान अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के प्रथम चरण की आध्यत्मिक एवम धर्म मंच की अध्यक्षता श्री 108 स्वामी अनन्ता नंद सरस्वती महाराज जी पीठाधीश्वर राज गुरु मठ वाराणसी द्वारा की गई राष्ट्र में युवा स्वामी सहजानंद सरस्वती के नाम से विख्यात दण्डी स्वामी अनन्तानन्द सरस्वती जी ने अपने उद्बोधन में दण्डी स्वामी विमलानन्द सरस्वती जी महाराज को नमन करते हुए भोजपुरी भाषा का भीष्म पितामह कहा गया। उनके महाकाव्य बौधायन पर विश्वविद्यालयी शोध की सामयिक आवश्यकता पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि भोजपुरी के संरक्षण एवं संवर्धन की राह भी यही से निकलेगी। आवश्यकता है इस पर पूरे मनोयोग से आगे बढ़ने की। उन्होंने विधायक सुरेंद्र नारायण सिंह, विधायक सौरभ श्रीवास्तव, भाजपा महानगर अध्यक्ष विद्यासागर राय, प्रो सुनील सिंह , आरएसएस प्रचारक उपेंद्र जी, राजेश यादव ‘चुल्लू’ सभासद, आजाद पत्र संपादक के एन राय, आयोजक डॉ बैजनाथ पाण्डेय एवं संयोजक ज्वाला सिंह का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग कर
शताब्दी महोत्सव सह भोजपुरी कवि सम्मेलन
का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग कर शताब्दी महोत्सव को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया। सही अर्थों में ये सभा भोजपुरी भाषा के उत्थान के लिए प्रयोगशाला सिद्ध होगी।

*भोजपुरी कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन*

शताब्दी महोत्सव कार्यक्रम में भोजपुरी कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमें गोपालगंज से संगीत सुभाष, बलिया से बृजमोहन प्रसाद ‘अनारी’ और कृष्ण मुरारी राय, गाजीपुर से संजीव कुमार त्यागी, बनारस से सुशांत कुमार शर्मा ने अपने भोजपुरी कविताओं का काव्य पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन आचार्य पुरेंद्र पौराणिक ने किया। राजगुरु मठ में बह रही थी । रसिक श्रोता इस काव्य रस की त्रिवेणी में गोते लगा रहे थे।कब शाम ढल गयी, पता नही चला। क्या पता ये काशी के केदार खण्ड स्थित आदि गुरु शंकराचार्य जी की पावन स्थली का असर था या ब्रह्मलीन स्वामी
विमलानंद जी महाराज तपस्चर्या का प्रभाव था या काशी विश्वनाथ के कवि साधको को स्वयं माँ शारदा स्वर देकर बाबा विश्वनाथ को सुना रही थी जो भी हो लेकिन एक नैसर्गिक गीत संगीत काव्य पाठ देखने सुनने को मिला, जो प्रयास से संभव नही निश्चित रूप से देव कृपा थी। संतो का तप और ताप स्पष्ट परिलछित हो रहा था।

सम्मेलन में गाजीपुर की माटी से आये ब्रह्मर्षि समाज के दिनकर युवा कवि संजीव त्यागी ने बनारस पर लिखी अपनी दिव्य रचना ‘बनारस’ सुनाई –
बसलें विश्वेश्वर हर कण हर तिनका में

बा कहां बनारस अस केहू दुनिया में

साक्षात अन्नपूर्णा रहि के पालेली।
लक्ष्मी वैभव भूषित वितान तानेली।
विविलाक्षी निसदिन किरिपा
बरसावेली
गंगा कल-कल में जेकर जस
गावेली।

सुख-शांति बसेली भैरव के पहरा में
बा कहाँ बनारस अस केहू दुनिया में

*अवध बिहारी सुमन से दण्डी स्वामी विमलानन्द सरस्वती तक का सफर*

भोजपुरी भाषा और साहित्य के पहले कहानी संग्रह के लेखक,
भोजपुरी में भगवान बुद्ध पर ऐतिहासिक महाकाव्य लिखने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार किसान नेता अवध बिहारी सुमन जी का जन्म सन 1921 में 14 जनवरी, मकर संक्रान्ति के दिन तत्कालीन शाहाबाद (अब बक्सर) जिला के मंगराव गांव में हुआ था। सन्यास आश्रम में आने से पूर्व इनका नाम अवध बिहारी सुमन था। छात्र जीवन से ही आप मेधावी और राजनीतिक चेतना से परिपूर्ण रहे। राजनीति में सक्रिय रहने के साथ-साथ आप का साहित्य में भी रुझान रहा। कांग्रेस पार्टी के किसान आंदोलन में इनकी भागीदारी रही। सन 1939 में इन्होंने बक्सर साहित्य परिषद की स्थापना किया। आप एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे एवं आप को आजादी के आंदोलन में कई बार जेल भी जाना पड़ा। आप के कलम से सन 1948 में भोजपुरी के पहले कहानी संग्रह ‘जेहल कs सनदि’ का प्रकाशन हुआ.राहुल सांकृत्यायन एवं नागार्जुन के साथ आपने अनेक संपादन कार्य भी किया आपके द्वारा सन 1950 में भोजपुरी पत्र ‘कृषक’
का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। सन 1954 आप का सन्यास आश्रम में प्रवेश हुआ और नाम अवध बिहारी सुमन से दंडी स्वामी विमलानंद सरस्वती जी महाराज में बदल गइल। साहित्य के प्रति समर्पण ने आप की कलम को कभी रुकने नहीं दिया।

सन 1960 में आप ने भोजपुरी महाकाव्य ‘बउधायन’ का लेखन प्रारम्भ किया एवं सन 1964 में स्वामी जी राजगुरू मठ, शिवाला घाट, वाराणसी में रहने लगे आपने सन 1972 में ‘बउधायन’ का लेखन पूर्ण किया जिसका प्रकाशन सन 1983 में हुआ। यह महाकाव्य भगवान बुद्ध के चरित्र पर आधारित है एवं भोजपुरी साहित्य की अनमोल धरोहर है। हिंदी और भोजपुरी साहित्य लेखन के अलावा स्वामी जी ने कई आध्यात्मिक पुस्तकों की रचना भी की है। भोजपुरी में ‘जिनगी कs टेढ़ राह’ उपन्यास, कहानी संग्रह, आत्मकथा एवं कुछ चिठ्ठियों की संग्रह है जिनमें से कुछ अप्रकाशित है। दण्डी स्वामी विमलानन्द सरस्वती जी महाराज सन 2008 में ब्रह्मलीन हो गए। आज उनकी पहचान एक आध्यात्मिक गुरु, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार किसान नेता एवं भोजपुरी भाषा और साहित्य के पहले कहानी संग्रह के लेखक के रूप में है।यह आयोजन धर्म आध्यात्म एवम काव्य रस का अमृत महोत्सव था।

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