June 20, 2025

युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं स्वामी विवेकानंद- प्रो० आनंद सिंह

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युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं स्वामी विवेकानंद- प्रो० आनंद सिंह

गाजीपुर। राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल में आज स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय प्रो०सुनील कुमार जी कर रहे थे । कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अपना वक्तव्य देते हुए अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय भोपाल की जनरल कौंसिल के मेंबर और सत्यदेव ग्रुप ऑफ कॉलेजेज के सीएमडी प्रो आनंद सिंह ने कहा कि स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। उनके जन्मदिन को युवा दिवस की संज्ञा दी गयी है। युवा शक्ति के भंडार होते हैं। समाज में सारे परिवर्तन युवाओं के कारण ही हुए हैं। इसलिए स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को औपचारिक दृष्टि से न देखकर हमें सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरणा दिवस के रूप में देखना चाहिए। युवाओं के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है देश में सामाजिक बदलाव के लिए काम करने की। ऐसा सामाजिक बदलाव जिसकी कामना स्वामी विवेकानंद ने की थी। उसी बदलाव के लिए उन्होंने भारत के वेदान्त दर्शन को व्यावहारिक बनाने का मंत्र दिया था- प्रैक्टिकस वेदान्त। उन्होंने कहा था कि आत्मा के स्तर पर जिस दार्शनिक समानता का उद्घोष करते हुए “अहं ब्रह्मास्मि” और “तत्त्वमसि” की घोषणा की गयी थी उसे सामाजिक बराबरी के लिए फिर से घटित करना होगा। तभी नया भारत बनेगा। डॉ आनंद सिंह ने शिकागो में ग्यारह सितंबर १८९३ को दिए गए विश्व प्रसिद्ध व्याख्यान में विवेकानंद जी की घोषणा का उल्लेख करते हुए कहा कि सांप्रदायिकता और उसकी वंशज धर्मांन्धता इस पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुके। अब समय आ गया है कि उसके ताबूत की अंतिम कील ठोंक दी जाए। नयी मानवता की राह सामंजस्य और समन्वय की राह होगी संघर्ष और खून ख़राबे की नहीं। लेकिन स्वामी जी के चिंतन के बावजूद हम संकीर्णता के उन्हीं पुराने रास्तों पर लौट जाना चाहते हैं। हम खुद को बदलना नहीं चाहते। स्वामी विवेकानंद ने भारत के मज़लूम, वंचित और शोषित के विकास के लिए सारे ख़ज़ाने को खोल देने की बात की थी। उन्होंने कहा था कि जब तक भारत का एक भी व्यक्ति भूखा है तब तक मैं चैन नहीं लूँगा। उन्होंने सर्वहारावाद और निर्धन के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की। स्वामी विवेकानंद के भारतबोध में सबसे अधिक जगह वही घेरता है। आज़ादी की पचहत्तरवीं वर्षगाँठ पर भी भारत का आम जन अभी भी दुखी है। स्वामी जी ने कहा था कि मैं समाजवादी हूँ। इसलिए नहीं कि यह कोई परिपूर्ण जीवन दर्शन है बल्कि केवल इसलिए कि रोटी न होने से आधी रोटी भी बेहतर है। भारत को धर्म नहीं रोटी चाहिए। भारत के पास पर्याप्त धर्म है। यहाँ ईसाई मिशनरियों को धर्म फैलाने की ज़रूरत नहीं है। सामाजिक जागरण और सेवा के लिए ही उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। कोई नया सम्प्रदाय बनाना उनका उद्देश्य नहीं था। वह ऐसे धर्म के खिलाफ थे जो भूखे को रोटी न दे सके। मानव सेवा को ही उन्होंने परम धर्म माना और भारत के दरिद्र नारायण की सेवा के लिए लगातार आवाहन किसी। उनकी आस्था पुरोहितवाद में नहीं थी। भद्र लोगों से वह निराश हो चुके थे। उन्होंने केवल युवकों का आह्वान किया और कहा कि मुझे सौ युवक मिल जायँ तो वह देश को बदल सकते हैं। आज़ाद भारत में राष्ट्रीय सेवा योजना की स्थापना इसी उद्देश्य से की गयी थी। हमें आत्मालोचना करना चाहिए कि स्वामी विवेकानंद के सपने को अभी तक कितना पूरा किया गया है। आज का दिन यही याद दिलाने के लिए है। कार्यक्रम का संचालन राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ शशिरंजन अकेला ने किया । कार्यक्रम में प्रो सुधीर सिंह भदौरिया ने आभार ज्ञापन किया। अनेक प्राध्यापक गणों के साथ ही विद्यार्थी गण भी ऑनलाइन चर्चा में जुड़े हुए थे।

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