मानस में तीन नगर है-फलाहारी बाबा

मानस में तीन नगर है-फलाहारी बाबा
भव रूपी सागर को पार करने के लिए श्रीराम कथा नौका के समान है।उक्त बातें उधुरा में आयोजित सीताराम विवाह उत्सव में अयोध्या से आये संत शिवरामदास जी महाराज उर्फ फलाहारी बाबा ने प्रवचन के दौरान कही।जिस प्रकार सागर में पूर्णिमा और अमावस्या के दिन ज्वार भाटा आता है ठीक उसी प्रकार मन के देवता चंद्रमा के कारण हमारे जीवन में भी उतार चढ़ाव आता रहता है।जैसे सागर का पहला किनारा दिखाई देता है दूसरा किनारा दिखाई नहीं देता उसी प्रकार जीवन का भी एक किनारा जन्म दिखाई देता है परंतु दूसरा किनारा मृत्यु दिखाई नहीं देती है।उन्होंने कहा कि रामचरितमानस का एक एक अक्षर मंत्र है।रामचरितमानस एक सिद्ध ग्रंथ है। क्षण भर का सत्संग जीवन मे अमुल परिवर्तन लाता है। जीवन का सूत्र ही सत्संग है।सत्संग के द्वारा दशा तो नहीं बदलती लेकिन दिशा अवश्य बदल जाती है। दिशा यदि सही मिल जाए तो दशा सुधर जाती है। परमात्मा की प्राप्ति प्रेम से ही संभव है। प्रेम त्याग सिखाता है।परमात्मा का गुणगान और श्रवण आनंद देता है तो शब्द चित्रों के अनुसार झांकी का दर्शन परम आनंद की अनुभूति में सरोवर करता है। रामजन्म सुनकर दशरथ जी को ब्रह्मानंद की प्राप्ति हुई तथा राम दर्शन के उपरांत परम आनंद की अनुभूति होने लगी। मानस में तीन नगर है, अयोध्या नगर,मिथिला नगर और लंका नगर प्रभु श्री राम ने अयोध्या को सील से, लंका को बल से तथा जनकपुर को रूप से जीता।कोई ऐसा नगर नहीं जिसमें दुर्जन और सज्जन दोनों ना रहते हो ।लंका दुर्जनों की नगरी में भी एक विभीषण जी थे अयोध्या सज्जनों की नगरी में भी एक दुर्जन के रूप में धोबी था जिसके कारण मां जगजननी सीता जी को सदा सदा के लिए बनवास में जाना पड़ा परंतु जनकपुर में एक कभी दुर्जन नहीं थे। मन बुद्धि चित्त और अहंकार चारों जहां काम करना बंद कर देते हैं वहां से प्रेम की शुरुआत होती है।भक्ति और प्रेम में वाणी अवरुद्ध हो जाती है। लेकिन नेत्र से वरबस प्रेमाश्रु छलकने लगता है। भगवान शंकर का समस्त परिवार गृहस्थ के लिए एक आदर्श उदाहरण है। परस्पर विरोधी होने के बाद भी कहीं तकरार नहीं होती।प्रत्येक रिश्ता अपनी मर्यादा का पालन करें अपनी गरिमा को धारण किए रहे तो परिवार में विघटन नहीं होता।सतयुग में मंत्र का महत्व था, त्रेता में यंत्र का द्वापर में तंत्र का और कलयुग में द्वेष और नफरत के चलते षड्यंत्र हावी होते जा रहा है। सत्संग और संस्कार के द्वारा ही नरपुंगव का निर्माण पुरुषार्थ का जागरण होता है।किसी भी व्यक्ति का आचरण उसके परवरिस परिवेश और परिवार की जानकारी देता है।श्री राम का आचरण चरित्र को चट्टान बनाता है। किंकर्तव्यविमूढ़ होने पर सत्संग का सूत्र काम करने लग जाता है।