गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता-फलाहारी बाबा

अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी फलाहारी बाबा ने गुरू पुर्णिमा के अवसर पर अपने आशिर्वचन में कहा की संत तुलसीदास ने कहा है कि ‘गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई। जो बिरंचि संकर सम होई ।। अर्थात- गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो।
गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई। जो बिरंचि संकर सम होई
फलाहारी बाबा ने गुरू पूर्णिमा पर्व पर अपने सद्गुरु देव भगवान को नमन करते हुवे अपने भक्तों को आशीर्वचन देते हुवे बताया की प्रत्येक युग में गुरु की सत्ता परमब्रह्म की तरह कण-कण में व्याप्त रही है। गुरु विहीन संसार अज्ञानता की कालरात्रि मात्र ही है। संत तुलसीदास ने कहा है कि ‘गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई। जो बिरंचि संकर सम होई ।। अर्थात- गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो।
शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ अंधकार यामूल अज्ञान, और ‘रु’ का अर्थ उसका निरोधक, ‘प्रकाश’ बताया गया है। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन से निवारण कर देता है, अर्थात अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला ‘गुरु’ ही है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी, क्योंकि यह सम्बन्ध आध्यात्मिक उन्नति एवं परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही होता है।
जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी
गुरु की महिमा वास्तव में शिष्य की दृष्टि से है, गुरु की दृष्टि से नहीं। एक गुरु की दृष्टि होती है, एक शिष्य की दृष्टि होती है और एक तीसरे आदमी की दृष्टि होती है। गुरु की दृष्टि यह होती है कि मैने कुछ नही किया। प्रत्युत जो स्वतः स्वाभाविक वास्तविक तत्व है, उसकी तरफ शिष्य की दृष्टि करा दी। तात्पर्य यह कि मैने उसी के स्वरुप का उसी को बोध कराया है। अपने पास से उसको कुछ दिया ही नहीं।
शिष्य की दृष्टि यह होती है कि गुरु ने मुझे सब कुछ दे दिया, जो कुछ हुआ है, सब गुरु की कृपा से ही हुआ है। तीसरे आदमी की दृष्टि यह होती है कि शिष्य की श्रद्धा से ही उसको ज्ञान हुआ है। किन्तु असली महिमा उस गुरु की ही है, जिसने शिष्य को आत्मबोध कराया, आत्मज्ञान के मार्ग पर चलाया ।