मन के कारण ही बंधन और मोक्ष को प्राप्त करते है-गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी

मन के कारण ही बंधन और मोक्ष को प्राप्त करते है-गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी
महर्षि विश्वामित्र की नगरी बक्सर के राजपुर प्रखंड के पिपराढ में आयोजित कार्यक्रम में श्री श्री जगद्गुरु गंगा पुत्र त्रिदंडी स्वामी जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं से कहा की इस संसार में कोई बंधन का कारण है कोई मुक्ति का कारण है।केवल इंद्रियां है केवल इंद्रियां होती तो जो सूर है वो भोगों के स्वाद को कैसे चख पाते,इसलिए इंद्रियां हमे नरक में नही डालती , कवियो ने कहा है,
मन के हारे हार है मन के जीते जीत, मन ही मिलावत राम से मन ही करत फजीत।
ये सब मन का बखेड़ा है,मन ठीक है तो सब ठीक है,जब बाल्मिकी जी महाराज तपस्या को स्वीकार कर के आए और नारद जी आश्रम पर पधारे तो प्रश्न कर दिया
मन: सुधि बिहिनानाम, मन को कैसे सुध किया जाए,क्यों की मैं स्वयं पहले पांच किलो अंगुली काट लेता था तब पानी पिता था ,आज हमारी वही बुद्धि एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को देख कर जिसके नर पक्षी को बहेलिए ने मार दिया,और हमारे मुख से निकल गया मां निषाद प्रतिष्ठा त्वां,अरे तू सुख को प्राप्त नही होगा ,तो ये मन सुध करने का उपाय क्या है, नारद कहते है जिसके अंदर ये आचरण है वह सुलझा हुआ है,जितासनो ,जितस्वासो, जितसंगो, जितेंद्रिय:,जीत क्रोध, जीत अहारो,जीत बायव्हारो, व्यवहार भी अच्छा होना चाहिए, ये नही की हम बहुत पढ़े लिखे है, तो दूसरो का जगह जमीन अपने नाम कराले ,ऐसा जो करता है उसे नरक में जाना पड़ता है ,या फिर नाली का कीटाणु बनना पड़ता है,अपने द्वारा किसी को दान किया हो या दूसरे के द्वारा दान किया हो,और कोई उसे हड़पना चाहता है तो उसे नाली का कीटाणु बनना पड़ता है।