देववाणी संस्कृत से ही भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है -स्वामी राजनारायणाचार्य

देववाणी संस्कृत से ही भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है
-स्वामी राजनारायणाचार्य
॥ देववाणी ॥
ज्ञातव्य है कि देववाणी संस्कृत से ही भारतीय संस्कृति आज भी जीवित है,किन्तु संस्कृत की जो दुर्दशा हो रही वह चिन्ता का विषय है।
संस्कृत भाषा के ह्रास से भारतीय संस्कृति का अविरल ह्रास होते जा रहा है ।
पड़ोसी प्रान्त बिहार में तो संस्कृत भाषा नष्ट होने के अन्तिम पायदान पर खड़ी है ।
आज पच्चीस वर्षों से बिहार की सरकारें चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार रही हो,उसने संस्कृत शिक्षा का ह्रास ही किया है।
उत्तरप्रदेश के मान्य ‘क वर्गीय’ संस्कृत महाविद्यालयों का अस्तित्व समाप्त होने जा रहा है,बहुसंख्यक संस्कृत महाविद्यालयों में न तो कोई योग्य अध्यापक,प्रध्यापक रह गये हैं,न तो सुसंस्कृत छात्र ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
कभी समय था जब प्राध्यापक { गुरुजी}अन्यूनांग,अनतिरिक्तांग,अनूचान,आर्षेय,साध्वाचरण,वाग्मी,अनतिकृष्ण,अनतिश्वेत आदि गुणों से गुणान्वित हुआ करते थे ।
आज कल बहुसंख्यक विद्यार्थी तो कदाचार से ‘आचार्य’ की उपाधि प्राप्त कर लेते हैं,पर उनमें अयोग्यता,अनभ्यस्तता के साथ ही अनुभवहीनता भी बनी रहती है । कतिपय विद्यार्थी तो दो या तीन महिने तक अध्ययन करने के बाद पूजा-पाठ कराकर जीविकोपार्जन में लग जाते हैं, पर संस्कृत भाषा का सम्यक् रूप से अध्ययन नहीं होने कारण वे मिथ्या उच्चारण कर बैठते हैं।
दुष्टःशब्दःस्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह।
स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति
यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोपराधात्॥{ पाणिनीय शिक्षा ५२}
पूर्व में गुरुजन उदात्त की जगह अनुदात्त का उच्चारण करने पर शास्त्रीय मर्यादानुकूल शिष्यों के गालों पर तमाचा लगाकर शिक्षित करते थे, इसलिए आज भी शुद्धोच्चारण की पवित्रता अक्षुण्ण बनी हुई है ।
उदात्तस्य स्थाने अनुदात्तं ब्रूते ~~~ तस्मै शिष्याय चपेटिकां ददाति।
{ महाभाष्य १।१।१ }
इस लघुप्रबन्ध के माध्यम से आदरणीय उत्तरप्रदेश सरकार का ध्यान आकृष्ट करा रहा हूँ,कृपया संस्कृत शिक्षा पर ध्यान देकर भारतीय संस्कृति की रक्षा की जाय।