यदि प्रत्येक व्यक्ति केवल अपना ही सुधार कर लेवे तो संसार तो स्वतः ही सुधर जायेगा-स्वामी राजनारायणाचार्य

यदि प्रत्येक व्यक्ति केवल अपना ही सुधार कर लेवे तो संसार तो स्वतः ही सुधर जायेगा-स्वामी राजनारायणाचार्य
जगद्गुरु स्वामी राजनारायणाचार्य जी ने कहा की
देश की विकट समस्या भूगर्भ में जल का अनवरत ह्रास होना है पर विडम्बना ही है कि देशवासियों में जल संरक्षण के प्रति उदासीनता दृष्टिगोचर हो रही है।
जहाँ अनवरत ह्रास हो रहा उसे विकास मानकर लोग आह्लादित हो रहे हैं।
अत्याधुनिक सुविधाओं के परिप्रेक्ष्य में
पेड़-पौधे,जंगल,पहाड़,नदियाँ,झरने,पशु,
पंछी प्रायः नष्ट होते चले जा रहे हैं।
जल संरक्षण के नाम पर अमृत सरोवर,कूप-तड़ाग,बावड़ी की रक्षा लिए योजना,परियोजनाओं के माध्यम से पैसे तो आते हैं,पर नैतिक पतन के कारण उस धन का उपयोग न होकर उपभोग होने लगता है जिस बिन्दु पर किसी आधिकारिक व्यक्ति का ध्यान नहीं जा रहा है ।
ध्यातव्य है कि जल ही जीवन है इसलिए जल संरक्षण पर ध्यान देना परम आवश्यक है ।
वेदों के अनुसार जीवन में अन्न से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण जल है।
‘ आपो वावान्नाद् भूयः’ { छान्दोग्योपनिषद् ७।१०।१ }
भारत कृषिप्रधान देश है,देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है।
कृषि करने के लिए जल की नितान्त आवश्यकता है।
ऋग्वेद का मंत्र है-
‘ तस्मा अरं वोयस्य क्षयाय जिन्वथ।
आपो जनयथा च नः॥
{ ऋग्वेद १०।९।३ }
इस मंत्र का अर्थ है ‘ हे जल ! अन्न प्राप्त करने में आपकी ही महत्वपूर्ण भूमिका है।
जीवनोपयोगी अनेकों प्रकार की औषधियाँ,वनस्पतियाँ,अन्न आदि पदार्थ आप पर निर्भर करते हैं।
हे जल ! जीवन जीने के लिये आप ही औषधि हो।
शरीर के पोषक पौष्टिक तत्त्व जिस प्रकार से गाय के दूध में विद्यमान रहता है,उसी प्रकार से जल में भी पुष्टिदायक तथा स्वास्थ्यवर्धक तत्त्व विद्यमान रहता है।
यजुर्वेद में जल से प्रार्थना की गई है कि हे जल ! जैसे माँ अपने बच्चे को दूध पिलाकर पोषण करती है,वैसे ही जीवनधारक अपना कल्याणप्रद रस प्रदान कीजिए।
‘ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः॥
{ यजुर्वेद ३६।१५ }
ध्यान देने योग्य बातें ये हैं कि सनातनधर्म को माननेवाले हिन्दू जल,स्थल,पर्वत,जंगल,पेड़-पौधे,पशु,पक्षी आदि में भी श्रीभगवान् नारायण को देखते हुए पूजन,यजन एवं प्रार्थना करते आये हैं।
जीवनोपयोगी प्राकृतिक सम्पदा की रक्षा के लिए तत्परता परम आवश्यक हो गया है,अन्यथा परिणाम तो दृष्टिगोचर हो ही रहा है ।
प्रत्येक जीवधारियों के लिए जल आवश्यक है,पर जल का श्रोत सुखते जा रहा है,भूगर्भ जलविहीन होते जा रहा है,जलस्तर अनवरत नीचे जा रहा है,प्रदूषित होकर नदियाँ सुखती जा रहीं हैं,
प्रदूषित जल से बचने के लिए दूध के भाव जल ख़रीदे जा रहे हैं।
पॉलिथीन पृथ्वी की उर्वरा शक्ति नष्ट करने के लिए अमर परमाणु बम का काम कर रहा है,इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने पॉलिथीन प्रतिबन्धित किया था,पर धड़ल्ले से पॉलिथीन का प्रयोग हो रहा है।
यदि प्रत्येक व्यक्ति केवल अपना ही सुधार कर लेवे तो संसार तो स्वतः ही सुधर जायेगा ।