भगवान शिव का स्वरूप लोक कल्याणकारी है- रामदेव दास जी महाराज

भगवान शिव का स्वरूप लोक कल्याणकारी है- रामदेव दास जी महाराज
गाजीपुर -गोस्वामी तुलसीदास ने रामकथा से पूर्व शंकर का चरित्र इसलिए रखा ताकि लोग रामभक्ति मेें दृढ निष्ठावान बन सकें। भगवान शिव की तरह श्रीराम में अनन्य निष्ठा रखने वाला उदाहरण कहीं अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। भांवरकोल ब्लाक क्षेत्र के स्वामी आत्मानंद इंटर कॉलेज टोडरपुर के प्रांगण में स्थापित भगवान शिव मंदिर पर महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिवसीय श्री राम नाम संकीर्तन वा रुद्राभिषेक रविवार को आरती व भंडारे के साथ संपन्न हुई इस अवसर पर अमेठी के गौरीगंज से पधारे रामचरितमानस प्रवचन करता संत श्री रामदेव दास जी महाराज ने शिवचरित्र का विश्लेषण करते हुए यह बात कही।
संत रामदेव दास जी ने कहा कि भगवान शिव ने निष्पाप सती को केवल इसलिए त्याग दिया क्योंकि श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने भगवती सीता का रूप धारण किया। यद्यपि भगवान शिव सीता को अपनी इष्ट देवी के रूप में मानते थे। जब सतीजी ने भगवान शिव की आराध्या सीताजी का रूप धारण कर लिया तो भगवान शिव उन्हें पत्नी के रूप में कैसे स्वीकार कर सकते थे। इसलिए भगवान शिव ने सती जी का त्याग कर श्रीराम में अपनी दृढ़ निष्ठा का उदाहरण दिया। उन्होंने श्रीराम कथा को आगेे बढ़ाते हुए पार्वती के जन्म तथा शिव विवाह के प्रसंग पर रोचक व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि भगवान शिव का स्वरूप लोक कल्याणकारी है। भगवान शिव के त्रिशूल का दर्शन करने से प्राणी के तीनों प्रकार के शूल नष्ट हो जाते हैं। दैहिक, देविक तथा भौतिक संताप शिव भक्तों को छू भी नहीं सकते।
भगवान शिव के हाथ में सुशोभित डमरू के नाद से ही वेदों की ऋचाएं, संगीत के सातों स्वर व्याकरण के सूत्रों का सृजन हुआ है। भगवान शिव के भव्य भाल पर सुशोभित गंगा त्रेलोक्य को पवित्र तथा पावन बनाती है।
वहीं दूसरी और उनके ललाट पर स्थित तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि यह तीसरा नेत्र प्रत्येक प्राणी के पास ज्ञान के रूप में विद्यमान है लेकिन सदगुरु की कृपा के बगैर इसका खुलना असंभव है। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक एवं विद्यालय के प्रधानाचार्य शिवाजी सिंह यादव के अलावा सोमदत्त कुशवाहा ,रामप्रवेश यादव ,शशिधर शुक्ला, ललन सिंह, श्रीकांत तिवारी, राधेश्याम यादव आदि रहे।