कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा : मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन, श्रीकाशी विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा के दरबार में भक्तों की कतार

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा : मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन, श्रीकाशी विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा के दरबार में भक्तों की कतार
मां अन्नपूर्णा को 151 क्विंटल प्रसाद का 56 भोग अर्पित किया गया।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन (गोधना) पूजनोत्सव और अन्नकूट महोत्सव का विधान है। काशी, मथुरा-वृंदावन समेत देश भर में इसका किया जाता है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि 25 अक्टूबर की शाम 4.37 बजे लग गई जो 26 अक्टूबर को दिन में 3.35 बजे तक रहेगी।
वाराणसी में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन मंदिरों में किया गया। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर और मां अन्नपूर्णा के दरबार में अन्नकूट देखने के लिए भक्तों की कतार लगी थी।
गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को हुई और देवस्थानों में अन्नकूट की झांकी भी सजाई गई। इस बार गोवर्धन पूजनोत्सव में स्वाति नक्षत्र का अदुभुत संयोग मिला। पर्व विशेष पर घर के बाहर प्रातः काल गाय के गोबर का गोवर्धन बनाकर पूजन किया गया। इसे शिखर युक्त पौधादि से संयुत और पुष्पादि से सुशोभित करने का विधान है।
अनेक स्थानों पर उसे मनुष्य के आकार का बनाकर सुशोभित करते हैैं और फिर उसका गंध-पुष्पादि से विधिवत पूजन कर प्रार्थना की जाती है। अन्नकूट भी वस्तुत: गोवर्धन पूजा का ही समारोह है। इसमें देवालयों में भगवान को कूटे हुए अन्न से खुद बनाए गए 56 प्रकार के मिष्ठान-पकवान का भोग अर्पित किया जाता है। इससे ही विभिन्न आकृतियां उकेर कर झांकी सजाई जाती है। इसलिए इसे अन्नकूट महोत्सव कहते हैैं।
वाराणसी में श्रीकाशी विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा का प्राचीन मंदिर है। मां अन्नपूर्णा को 151 क्विंटल प्रसाद का 56 भोग अर्पित किया गया। दर्शन-पूजन का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाएगा। अन्नकूट का पर्व मनाने से इंसान को लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
प्राचीन काल में बृज से संपूर्ण नर-नारी अनेक पदार्थों से इंद्र का पूजन करते और नाना प्रकार के सभी रसों से परिपूर्ण 56 भोग का भोग लगाते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में ही इंद्र की पूजा को निषिद्ध कर गोवर्धन की पूजा कराई।
स्वयं ही दूसरे स्वरूपों से गोवर्धन बन कर अर्पण की हुई संपूर्ण भोजन सामग्री का भोग लगाया। यह देख कर इंद्र ने बृज पर प्रलय करने वाली वर्षा की लेकिन भगवान श्रीकृण ने गोवर्धन पर्वत को हाथ पर रख कर बृजवासियों को उसके नीचे खड़ा कर बचा लिया तब से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजनोत्सव व अन्नकूट मनाने की परंपरा चली आ रही है। यह वैष्णवों का प्रमुख पर्व है।