रमा एकादशी का महत्व

रमा एकादशी का महत्व
पौराणिक युग में मुचुकुंद नामक प्रतापी राजा थे, इनकी एक सुंदर कन्या थी, जिसका नाम चन्द्रभागा था। इनका विवाह राजा चन्द्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया गया। शोभन शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल था।वह एक समय भी बिना अन्न के नहीं रह सकता था।
एक बार दोनों मुचुकुंद राजा के राज्य में गये। उसी दौरान रमा एकादशी व्रत की तिथी थी। चन्द्रभागा को यह सुन चिंता हो गई, क्यूंकि उसके पिता के राज्य में एकादशी के दिन पशु भी अन्न, घास आदि नही खा सकते, तो मनुष्य की तो बात ही अलग हैं। उसने यह बात अपने पति शोभन से कही और कहा अगर आपको कुछ खाना हैं, तो इस राज्य से दूर किसी अन्य राज्य में जाकर भोजन ग्रहण करना होगा। पूरी बात सुनकर शोभन ने निर्णय लिया कि वह रमा एकादशी का व्रत करेंगे, इसके बाद ईश्वर पर छोड़ देंगे।
एकादशी का व्रत प्रारम्भ हुआ। शोभन का व्रत बहुत कठिनाई से बीत रहा था, व्रत होते होते रात बीत गई लेकिन अगले सूर्योदय तक शोभन के प्राण नही बचे। विधि विधान के साथ उनकी अंतेष्टि की गई और उनके बाद उनकी पत्नी चन्द्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी।उसने अपना पूरा मन पूजा पाठ में लगाया और विधि के साथ एकादशी का व्रत किया।
दूसरी तरफ शोभन को एकादशी व्रत करने का पूण्य मिलता हैं और वो मरने के बाद एक बहुत भव्य देवपुर का राजा बनता हैं, जिसमे असीमित धन और एश्वर्य हैं।एक दिन सोम शर्मा नामक ब्रह्माण्ड उस देवपुर के पास से गुजरता हैं और शोभन को देख पहचान लेता हैं और उससे पूछता हैं कि कैसे यह सब एश्वर्य प्राप्त हुआ। तब शोभन उसे बताता हैं कि यह सब रमा एकादशी का प्रताप हैं, लेकिन यह सब अस्थिर हैं कृपा कर मुझे इसे स्थिर करने का उपाय बताये। शोभन की पूरी बात सुन सोम शर्मा उससे विदा लेकर शोभन की पत्नी से मिलने जाते हैं और शोभन के देवपुर का सत्य बताते हैं।
चन्द्रभागा यह सुन बहुत खुश होती हैं और सोम शर्मा से कहती हैं कि आप मुझे अपने पति से मिलादो। इससे आपको भी पुण्य मिलेगा। तब सोम शर्मा उसे बताते हैं कि यह सब एश्वर्य अस्थिर हैं। तब चन्द्रभागा कहती हैं
सोम शर्मा अपने मन्त्रो एवम ज्ञान के द्वारा चन्द्रभागा को दिव्य बनाते हैं और शोभन के पास भेजते हैं। शोभन पत्नी को देख बहुत खुश होता हैं।तब चन्द्रभागा उससे कहती हैं मैंने पिछले आठ वर्षो से नियमित ग्यारस का व्रत किया हैं। मेरे उन सब जीवन भर के पुण्यो का फल मैं आपको अर्पित करती हूँ। उसके ऐसा करते ही देव नगरी का एश्वर्य स्थिर हो जाता हैं।और सभी आनंद से रहने लगते हैं।
इस प्रकार रमा एकादशी का महत्व पुराणों में बताया गया हैं।इसके पालन से जीवन की दुर्बलता कम होती हैं,जीवन पापमुक्त होता हैं।