जो गृहस्थ अपने माता-पिता की सेवा नहीं करता,वह कभी भी गुरुभक्त नहीं हो सकता- जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी राजनारायणाचार्य

जो गृहस्थ अपने माता-पिता की सेवा नहीं करता,वह कभी भी गुरुभक्त नहीं हो सकता-
जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी राजनारायणाचार्य
जिसका जीवन गुरुभक्ति से ओतप्रोत नहीं होता,वह कभी भी भगवद्भक्त नहीं हो सकता।
श्रीभगवान् की भक्ति को प्राप्त करने के लिये अपने माता-पिता तथा गुरुदेव की भक्ति करो तो श्रीभगवान् की भक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जायेगी।
शराब पीने के बाद ही दुनिया के सारे अत्याचार-पापाचार किये जाते हैं ।
मदिरापानजन्य पाप प्रक्षालन के लिए किसी भी प्रकार का प्रायश्चित शास्त्रों में नहीं प्राप्त होता है।
पशु-पक्षियों का माँस खाना सबसे बड़ा महापाप है जिसका परिणाम अवश्य ही माँस खानेवाले को प्राप्त होता है ।
अपना सर्वविध कल्याण चाहते हो तो जिस प्रकार की पवित्रता छठपर्व पर रखते हो,वैसी ही पवित्रता सालों-साल अपने घरों में रखो।
किसी को सुख पहुँचाना धर्म न होकर उसके हित { कल्याण } के लिए कार्य करना ही धर्म कहलाता है।
पूर्ण सनातनब्रह्म भगवान् श्रीसीताराम जी के दिव्य पादपद्मों की सेवा करने हेतु अवढरदानी आशुतोष भगवान् शिव ही बन्दर का रूप बनाकर श्रीहनुमान् जी बन गये हैं ।
जिनका आचारण पवित्र है,उन्हीं का चरण सर्वविध पूज्य होता है ।
केवल पूजापाठ करने से ही कोई महात्मा नहीं हो जाता है ।
ज्ञातव्य है कि माँस मदिरा का सेवन करने से तथा परस्त्रियों पर कुदृष्टि रखने के कारण ही महाबली,महाविद्वान्,महाऐश्वर्यवान्,महान शिवभक्त रावण राक्षस कहा गया जिसका पुतला दहन आज तक किया जा रहा है ।
श्रीहनुमान् चालीसा का प्रतिदिन १०८ बार पाठ करने से कैसी भी विपत्ति टल जाती है तथा पाठकर्ता के यहाँ सुख-समृद्धि बढ़ जाती है ।
छपरा का यह श्रीहनुमान् जी का मंदिर निश्चितरूप से सिद्ध पीठ है।
यहाँ के परम तेजस्वी श्रीहनुमान् जी सद्यः मनोकामनाओं को अवश्य ही पूर्ण करनेवाले हैं ।
इस मंदिर समिति के अध्यक्ष जी तथा प्रोफ़ेसर श्रीरणंजय सिंह जी, श्रीबासुदेव वर्मा जी, श्रीशर्मा जी आदि अथक परिश्रम करके श्रीहनुमान् जी की जयंती महोत्सव के माध्यम से जनकल्याण करने हेतु युद्धस्तर पर कार्य कर रहे हैं,इनके प्रति मंगलाशासन करता हूँ ।