June 24, 2025

अपने जीवन को हर्ष और विषाद के बिना कैसे जिया जाता है, यह प्रभु चरित्र दर्शन से प्रकट करते हैं-फलाहारी बाबा

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अपने जीवन को हर्ष और विषाद के बिना कैसे जिया जाता है, यह प्रभु चरित्र दर्शन से प्रकट करते हैं-फलाहारी बाबा

श्री राम कथा में राम विवाह सम्पन

गाजीपुर जनपद के बाराचंवर में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में अयोध्या वासी श्री श्री 1008 महामण्डलेश्वर श्री शिवराम दास जी उपाख्य फलाहारी जी महाराज के मुखारविंद से श्रीराम कथा की अमृतवाणी की वर्षा हो रही है। पूज्य संत फलाहारी जी ने कहा कि रामकथा सबको जोडने की कथा है। प्रभु छोटे-छोटे वर्ग को साथ लेकर चलते हैं।

अपने जीवन को हर्ष और विषाद के बिना कैसे जिया जाता है, यह प्रभु चरित्र दर्शन से प्रकट करते हैं। जीवन में मर्यादाओं को पुष्ट करने की यह कथा है, यह प्रेम यज्ञ है। हमारा राष्ट्र शरणागति की ओर गति कर रहा है। श्री रामचरित मानस के सातों कांड शरणागति का निरूपण करते हैं, उन्हें सती, भरत, शबरी, हनुमान विभीषण,मंदोदरी एवं महादेव के चरित्रों से समझा जा सकता है। रामराज्य प्रेम राज्य है।

कथा में पूज्य फलाहारी जी ने अपार जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान श्रीराम का जनकपुर में प्रवेश एवं वहां से विदाई तक कुछ विशेष घटनाएं घटित होती है। इसका भाव पक्ष भी है और अध्यात्मिक पक्ष भी। महाराज जनक प्रभु को देखकर ब्रह्म सुख छोडकर, सहज वैराज्य त्यागकर अनुरागी बन गए। निर्गुण को आराधना का साधक सगुण ब्रह्म के दो रूपों का प्रथम मिलन है। यह प्रकृति व पुरूष का मिलन है। मानसकार कहते हैं कि दोनों एक दूसरे को ह्दयस्थ करते हैं, मूलतः जानकी जी तो ठाकुर के ह्दय में और जानकी जी के ह्दय में ठाकुर विराजित हैं। दोनों का एकत्व ह्दय के रूप में है, जनक परम ज्ञानी है। धनुष न टूटने पर चिन्तित हो जाते हैं, उनकी धर्मपत्नी सुनैना चिन्तित हो जाती है।

जानकी जी भी चिन्तित हो जाती हैं, तब प्रभु ने पहले अहमता रूपी धनुष तोड़ा, फिर ममता रूपी चिंता को समाप्त किया। परशुराम जी स्वयं अवतार हैं किन्तु धनुष की ममता कुछ समय के लिए संशयी बना देती है, फिर तो सत्य का प्रकाश होता है। कथा में फलाहारी बाबा ने धनुष यज्ञ प्रकरण पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि नगर दर्शन, पुष्प वाटिका प्रसंग साधकों को नव जीवन का संचार करती है।

गौरी भवानी की श्रद्धापूर्वक अर्चना आज भी विवाह योग्य कन्याओं द्वारा अनुसरण करने योग्य है। जनक का आक्रोश भैया लक्ष्मण सहन नहीं कर पाते। गुरू विश्वामित्र की आज्ञा पाकर भगवान राम जनक के परिताप को मिटाने उठते हैं। भगवान राम ने एक क्षण के मध्य में ही धनुष तोड़ दिया।

फलाहारी जी ने संगीतमय राम कथा से उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। धनुष के विखंडन के बाद सियाजू ने राम के गले में वरमाला डाल दी। परशुराम जी आते हैं, उनके प्रसंग उपरांत अयोध्या से बरात पधारती है एवं मंगल मुहुर्त विवाह पंचमी की तिथि में श्री सीताराम जी का मंगल विवाह संपन्न होता है।

वैदिक विधि विधान से श्री राम जी का, श्री जानकी से, श्री लक्ष्मण जी का श्री उर्मिला जी से, भरत जी का मांडवी जी से, शत्रुघ्र जी का विवाह श्रतुकीर्ति से संपन्न होता है। कन्या विदाई का प्रसंग सभी के लिए अत्यंत मार्मिक पक्ष होता है। विदाई हुई बारात वापस अयोध्या पहुंची। विश्वामित्र महाराज की विदाई के साथ गोस्वामी जी मानस के प्रथम सोपान बालकांड का समापन करते हुए कहते हैं कि मैंने अपनी वाणी को पावन करने के लिए यह कथा कही, जो भी यह प्रसंग सप्रेम गाएगा या सुनेगा। उसके जीवन में मंगल प्रसंग उत्साहपूर्वक संपन्न होंगे।

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