June 23, 2025

भगवान का लक्ष्य मर्यादित जीव की रक्षा और अमर्यादित जीव का नाश करना है-जीयर स्वामी

IMG-20221003-WA0050

भगवान का लक्ष्य मर्यादित जीव की रक्षा और अमर्यादित जीव का नाश करना है-जीयर स्वामी

मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं । भाग्य स्वतंत्र नहीं होता । यह के कर्मों का फल होता है । जिस तरह जल नहीं रहे तो तरंग और फेन का अस्तित्व नहीं, उसी तरह कर्म के बिना भाग्य का निमार्ण नहीं हो सकता। मनुष्य अपने सुख-दुख का कारण स्वयं है। वर्तमान के कर्म ही भविष्य में प्रारब्ध बनकर भाग्य रचते हैं। “नहीं कोई सुख-दुख कर दाता, निज कृत कर्म भोग सुनु आता।” उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने बलिया चातुर्मास्य यज्ञ में प्रवचन करते हुए कहीं।

 

श्री जीयर स्वामी ने श्रीमद भागवत महापुराण कथा के तहत प्रहलाद जी द्वारा प्रजा को दिए गए उपदेश की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भगवान पक्षपात नहीं करते। वे निष्पक्ष हैं। जिसमे पक्षपात आ जाये, वह भगवान नहीं देवता हो सकता है। जब राक्षस साधना द्वारा बल प्राप्त करके देवाताओं पर अत्याचार करते हैं, तब भगवान राक्षसों का दमन करते हैं। यदि भगवान पक्षपाती होते तो विमलात्मा, संत, साधु और सज्जन निरंतर उनका स्मरण जप-तप नहीं करते। भगवान ही एक मात्र ध्येय, ज्ञेय, प्रेय और श्रेय हैं। हम शरीर शुद्धि के लिए भगवान का ही नाम स्मरण करते हैं। भगवान का लक्ष्य मर्यादित जीव की रक्षा और अमर्यादित जीव का नाश करना है ।

स्वामी जी ने कहा कि धर्म निर्माण नहीं किया जाता, वह सृष्टि के साथ उत्पन्न होता है। धर्म को मानव जीवन से हटा दिया जाय तो जीवन को कोई महत्त्व नहीं रहा जाता। इसलिए धर्म कभी भी किसी भी परिस्थिति में त्याज्य नहीं है। पूरे विश्व में लगभग चार हजार पंथ हैं। धर्म के एक-दो सिद्धान्त को लेकर अपने अनुसार परोसना ही पंथ है। भगवान के लय- पूजा और साधना से जो अच्छाईयाँ प्राप्त होती हैं, उनको समाज में लिपिबद्ध कर परोसना और समझाना ही दर्शन कहा जाता है।

 

About Post Author