June 24, 2025

शारदीय नवरात्र महोत्सव आदिशक्ति श्रीलक्ष्मीजी का ही विशेष उत्सव है-स्वामी राजनारायणाचार्य

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शारदीय नवरात्र महोत्सव आदिशक्ति श्रीलक्ष्मीजी का ही विशेष उत्सव है-स्वामी राजनारायणाचार्य

आदिशक्ति के भी विविध रूप है,भक्तजन अपनी आस्था के अनुसार किसी एक स्वरूप की आराधना करते हैं।
ज्ञातव्य है कि आदिशक्ति यदि माता हैं तो आदिशक्तिमान पिता अवश्य होगें, क्योंकि बिना पिता के माता सिद्ध नहीं हो सकती।
सिद्धांत है कि शक्तिमान की शक्ति है ; न कि शक्ति के शक्तिमान हैं।
अपनी परम्परा एवं आस्था के अनुसार भक्तजन केवल शक्ति की उपासना या भगवान् शिव शक्ति की उपासना व परमेष्ठी ब्रह्मा जी की शक्ति उपासना सनातनधर्म की मर्यादा में रहते हुए करते हैं।
वास्तव में भगवान् नारायण की अनपायिनी शक्ति श्रीलक्ष्मीजी ही आदिशक्ति हैं,जिनकी नवरात्र महोत्सवजन्य आराधना श्रीवैष्णव परम्परा के अनुसार श्रीतिरुपति बालाजी मंदिर देवरिया में आज से प्रारम्भ हुई है।
कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुसमर्थ अघटितघटनापटीयसी सर्वेश्वरी जगज्जननी श्रीलक्ष्मीजी की आंशिक महिमा उद्घाटित करने का प्रयास कर रहा हूँ,यद्यपि जगज्जननी की महिमा का यथार्थरूप से समग्र गायन मनुष्यों के कदापि शक्य नहीं है ।
श्रीलक्ष्मीजी एक नाम ‘मा’ है, ‘लोकमाता’ है -” इन्दिरा लोकमाता मा क्षीरोदतनया रमा” ( अमरकोश ) इससे सिद्ध होता है कि कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों को जन्म देनेवाली माता केवल श्रीलक्ष्मीजी ही हैं,ये ही आदिशक्ति हैं, इन्हीं भगवती के अंशांभूता अन्यान्य देवमहिषी देवियाँ हैं।

श्रीलक्ष्मी जी का भगवान् नारायण से नित्य सम्बन्ध है,अत: लक्ष्मी जी ‘ नित्यानपायिनी मूर्ति’ कही जातीं हैं।
ध्यातव्य है कि श्रीभगवान् नारायण की प्रत्यक्ष साकार कृपा ही साकारभूत् श्रीलक्ष्मीजी कहलाती हैं।
” लक्ष्म्या सह हृषीकेशो देव्या कारुण्यरूपया।
रक्षक:सर्वसिद्धान्ते वेदान्तेषु च गीयते॥”
श्रीलक्ष्मीजी जी को ही ‘श्रीजी’ भी कहा जाता है।
‘ श्रीयते इति श्री:’ इस कर्मणि व्युत्पत्ति से ये अर्थ निकलता है कि जो उनके आश्रित हो जाता है उसे उनकी वात्सल्यता,सुलभता स्पष्टतया दीखने लगती है।
यदि कर्तरि व्युत्पत्ति करेगें तो श्रीजी यानी लक्ष्मीजी के आश्रित कीट से लेकर श्रीब्रह्मा जी तक प्रायः सभी हैं फिर भी ‘श्रीजी’ श्रीभगवान् नारायण की पट्टमहिषी हैं,पटरानी हैं,भगवती हैं, ईश्वरी हैं- ” श्रयते इति श्री:।”
‘शृणाति निखिलान् दोषान्,श्रीणाति च गुणैर्जगत्।
श्रीयते चाखिलैर्नित्यम्, श्रयते च परं पदम्॥
श्रयन्तीं श्रीयमाणां च शृणातीं शृण्वतीमपि॥
‘ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ’ श्रीजी दो प्रकार से कार्यों का सम्पादन करतीं हैं। १.अर्थरूपा २.ज्ञानरूपा।
ज्ञानरूपा श्री को ‘श्री’ कहते हैं जबकि अर्थरूपा श्री ‘को लक्ष्मी कहते हैं।
शारदीय नवरात्र महोत्सव पर जगज्जन्मादिकारयित्री,अघटित-घटना-पटीयसी श्रीवैकुण्ठवल्ली श्री श्री महालक्ष्मीजी जो समय समय पर सीता, रुक्मिणी, राधा, रेवती, सत्यभामा आदि विविध स्वरूपों को धारण कर पूर्ण सनातनब्रह्म श्रीमन्नारायण भगवान् की सर्वविध सेवा करती हुई सम्पूर्ण जीवों को श्रीभगवान् के दिव्यपादारविन्दों में लगानेवाली हैं तथा प्रकृति एवं पुरुष सभी के आश्रय होने के बाद भी जो श्रीभगवान् नारायण के आश्रित हैं , उन्हीं वात्सल्यता से परिपूर्ण श्री श्रीजी के श्रीचरणारविन्दों में प्रपत्ति करता हूँ, कोटिश: वन्दनचन्दन समर्पित करता हूँ।

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