परमात्मा को पाने का दो हि साधन है बैर और प्रेम-फलाहारी बाबा
गाजीपुर जनपद के बाराचंवर स्थित शिव मंदिर पर अयोध्या धाम से पधारे श्री श्री 1008 महामंड्लेश्वर श्री शिवरामदास जी उपाख्य फलहारी बाबा ने अपनें मुखारवींद से मानस मंदकीनी को प्रवाहित करते हुवे कहा कि परमात्मा को पाने का दो हि साधन है वैर और प्रेम।जय और विजय को जब श्राप मिला तो दो पथ प्रशस्त हुवा।परमात्मां से प्रेम करने पर सात जनम तथा बैर करने पर तीन ही जनम में भगवान के धाम आ सकते है। इस लिये कि बैर और प्रेंम दोनो में क्रिया एक हि होती है।याद करना !प्रेमीं को प्रेमीं चौबीस घंटे याद रहता है और दुश्मन को दुश्मन चौवीस घंटे याद रह्ता है। यह जगत न प्रेम करने लायक है न बैर करने लायक है।बैर भी करना हो तो परमात्मा से करना चाहिए।आगे फलाहारी बाबा ने कहा कि ऐसा प्रेम पात्र का क्यों चुनांव किया जाये जो समय समय से बद्लता रहे।बचपन में माता पिता से जवानीं में पति पत्नि से बुढापा में पुत्र से जो प्रेम करता है।किंतु ये तीनों प्रेमीं श्मशान के वाद बाद कि यात्रा में साथ नहिं देते है।किंतु परमात्मा रुपी प्रेम पात्र कभी बदलनां नहीं पड्ता है।वह सखा स्वामी और शिष्य तीनों बननें के लिये तैयार होता है।वह बचपन जवानी और बुढापा के बाद मृत्यु के उपरांत भी साथ देने के लिये तैयार रह्ता है।जीव यदि कल्याण की कामना करता है तो परमात्मा अनेकानेक बार प्रयास करके जीव का उद्धार करता है। जय और विजय नें एक बार हिरणयाक्ष और हिरणकश्यप के रुप में जनम लिया तो परमात्मां को दो बार वाराह और नरसिंह के रूप में अवतार लेकर उद्धार करना पडा।यह मनुष्य योनी भी हमारे कर्मो का फल नहिं परमात्मां के कृपा का प्रसाद है। कब हुक करु करुना नर देहीं देत हेतु विनु इश सनेही !मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य गति निर्वाण मुक्ती पाना है। मनुष्य योनि हि एक मात्र योग योनि है बाकि समस्त योनियां भोग योनि है। मोक्ष कि प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम साधन मानव तन है ! परमार्थ करते करते स्वार्थ की पुर्ती स्वत: हो जाया करती है !दूसरे की सेवा और सहायता करनें से बडा कोई धर्म नहीं है !कथा में बाबा के गाये हुवे भजन जो करते रहोगे भजन धिरे धिरे तो मिल जायेगा वो सजन धिरे धिरे भजन पर उपस्थित कथा प्रेमी झूम उठ रहें है।