धर्म व साधु का सूचक वेश नहीं-जीयर स्वामी।

धर्म व साधु का सूचक वेश नहीं-जीयर स्वामी।
बलिया जनपद के जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के पास आयोजित चातुर्मास ब्रत के दौरान जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि लाल – पिला वस्त्र पहनकर, दाढ़ी बढ़ाकर, चिमटा और कमंडल लेकर घूमना साधु की परिभाषा नहीं है। साधु का ये सब वेश है लेकिन ऐसे वेश धरण करने वाले को साधु नहीं कहा जाता है। केवल वेश धारण कर लेना साधु का सूचक नहीं है। उन्होंने कहा कि वेश हों और इसके साथ साथ हमारा उद्देश्य ठीक नहीं है तो हम साधु के अधिकारी नहीं हो सकते हैं। विपत्ति में धैर्य की त्याग नहीं करना, धन, पद व प्रतिष्ठा बढ़ने पर सहज हो जाना, वाणी भी समाज को समन्वय व सौहार्द स्थापित करने वाला हो, समाज व संस्कृति में अस्थिरता पैदा करने वाला वाणी न हो, अच्छे कर्मों की संकल्प ले तो उसे पीछे न हटे वह पूरा करने वाला ही साधु कहलाता है।
कुकर्मी व कदाचारी व्यक्ति का संग नरक देने वाला होता है
स्वामी जी महाराज ने कहा कि कामी, लोभी, कुकर्मी व कदाचारी व्यक्ति का संग नरक देने वाला होता है। जबकि सदाचारी, समाजसेवी और सौहार्दसेवी पुरूष का संगत हमें आत्मकल्याण कराने वाला होता है। शास्त्र में बताया गया है कि घर में रहे चाहे धर्मशाला, मठ में रहे, भोगवादिता और विषयवादिता में रहनेवाले, कदाचार से जीवन जीने वाले व्यक्ति का संगत नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार से मनुष्य को शरीर रक्षा के लिए भोजन करनी चाहिए, वस्त्र पहनना चाहिए, औषधि खाना चाहिए और समाज के लोगों के साथ व्यवहार भी होनी चाहिए। मनुष्य की भी उसी प्रकार से जीवन जीना चाहिये जिस प्रकार से कमल का पत्ता जल में ही रहता है लेकिन जल में रहने के बाद भी बाहर ही रहता है।