June 25, 2025

देवता तथा पितरों के कार्यों में आलस्य नहीं करना चाहिये-स्वामी राजनारायणाचार्य

 

” देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्”
( तै. उपनिषद् -१.११.१)
देवता तथा पितरों के कार्यों में आलस्य नहीं करना चाहिये।
पितरों का कार्य अर्थात् श्राद्ध।
आज पूर्णिमा तिथि हो गई है इसलिये नान्दीमातामह श्राद्ध पार्वण विधि के अनुसार करना चाहिये।
पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध आज ही सम्पन्न होगा।
श्राद्ध पर किंचित् विचार करते हैं।
पिता धर्म: पिता कर्म: ~~ के अनुसार जीवित माता पिता की अत्यन्त श्रद्धा के साथ सेवा करना तथा मृत माता-पिता का श्राद्ध करना पुत्र का स्वधर्म है, जिसे करना ही चाहिये ।
श्राद्ध तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है साथ में इसका परिणाम भी सुन्दर है।
श्राद्ध करनेवाला परमपद को प्राप्त हो जाता है- ‘ पुत्रो वा भ्रातरो वापि दौहित्र: पौत्रकस्तथा। पितृकार्ये प्रसक्ता ये ते यान्ति परमां -गतिम्।। ( अत्रिसंहिता )
श्रद्धा से ही श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है। यथा – श्रद्धया पितृन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।
सामान्यत: श्राद्ध की दो प्रक्रिया है- पिण्डदान तथा ब्राह्मण भोजन।
अथर्ववेद में आया है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह भोज्य पदार्थ पितरों को प्राप्त हो जाता है।
शरीर छुटने के बाद पितरों का शरीर सूक्ष्म हो जाता है, वह सूक्ष्म शरीर आमन्त्रित ब्राह्मण शरीर में समाविष्ट होकर श्राद्धान्न को ग्रहण करता है।
” तिर इव वै पितरो मनुष्येभ्य:” ( शतपथ ब्राह्मण -२.३.४.२१ )
” इममोदनं नि दधे ब्राह्मणेषु विष्टारिणं लोकजितं स्वर्गम्। ( अथर्ववेद ४.३४.८ ) ।
श्राद्ध बारह प्रकार का मिलता है –
नित्य, नैमित्तिक,काम्य, वृद्धि,पार्वण,सपिण्डन,गोष्ठी, शुद्ध्यर्थ, कर्मांग, दैविक, यात्रार्थ, पुष्ट्यर्थ। भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारम्भ होता है।
पितरों के लिये कृष्णपक्ष का दिन तथा शुक्लपक्ष की रात्रि है इसीलिये कृष्णपक्ष पितृपक्ष कहलाता है।
” पित्र्ये रात्र्यहनी मास: प्रविभागस्तु पक्षयो:।
कर्मचेष्टास्वह: कृष्ण: शुक्ल: स्वप्नाय शर्वरी।। ( मनुस्मृति १.६६ )
भगवन्मखोल्लासार्थ श्राद्ध-तर्पण आदि अवश्य करना चाहिये।
ब्रह्मेन्द्ररुद्रनासत्यसूर्याग्निवसुमारुतान्।
विश्वेदेवान्पितृगणान्वयांसि मनुजान्पशून्॥
सरीसृपानृषिगणान्यच्चान्यद्भूतसंज्ञितम्।
श्राद्धं श्रद्धान्वित: कुर्वन्प्रीणयत्यखिलं जगत्॥ { श्रीविष्णुपुराण ३। १४।१।२ }
श्रद्धा सहित श्राद्धकर्म करने से मनुष्य ब्रह्मा, इन्द्र, रुद्र , अश्विनीकुमार , सूर्य, अग्नि, वसुगण, मरुद्गण,विश्वेदेव, पितृगण, पक्षी, मनुष्य, पशु, सरीसृप, ऋषिगण, तथा भूतगण आदि सम्पूर्ण जगत् को प्रसन्न कर देता है।

About Post Author