June 25, 2025

संस्कृति को भूल जाने के कारण सभी साधन रहने के बाद भी हम निराश हैं-जीयर स्वामी

 

अगर जीवन में शांति चाहते है तो कामना का करें त्याग

बलिया जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के पास आयोजित चातुर्मास ब्रत के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्‍वामी जी महाराज ने कहा कि कर्म करते हुए फल की कामना नही करना चाहिए। कर्म तो करना चाहिए, लेकिन फल रहित होकर करना चाहिए। इसमें आत्म शांति मिलेगा। यदि नही भी फल की कामना करेंगे और अच्छे कर्म करेंगे तो फल हमें ही प्राप्त होगा। कामना रहित हो करके यदि कर्म करते हैं, तो उसमें बहुत आनंद आता है। उसमें टेंशन, अटेंशन की संभावना नही रहती है। कामना लेकर कोई काम करते हैं तो थोड़ा टेंशन, डिप्रेशन, शोक और कहीं भटकाव की संभावना बनी रहती है।

उन्‍होंने आगे कहा कि जो जीवन में शांति चाहता है, वह कामना का त्याग करे। इससे हर पल, हर क्षण हमें शांति ही शांति है। आशा और कामना हमें, उस फांसी पर हमे लटका देती है, उस सूली पर लटका देती है, जब तक प्राण, जब तक स्वास रहता है, तब तक हम कुछ कर हीं नही पाते। हमेशा संशय में रहते हैं। मनोरथ कभी समापन नही होती है। अच्छे कर्म से ही सुख की होती है, प्राप्ति हमारे द्वारा किए हुए कर्मों का फल सुख और दुख के रूप में प्राप्त होता है।

स्वामी जी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार हमारे चाहने के बाद भी दुख हमारा पीछा नहीं छोड़ता है। ठीक उसी प्रकार से हम नहीं भी कामना करेंगे तो हमारा सुख और आनंद हमारे पास रहेगा। जैसे हम दुख के लिए प्रयास नहीं करते हैं। उसी प्रकार सुख के लिए भी हमें प्रयास नहीं करनी चाहिए। हमें कर्तव्य व कर्म को अच्छा करना चाहिए। लज्जा हमारी राष्ट्र की संस्कृति है, स्वामी जी महाराज ने कहा कि लज्जा हमारी राष्ट्र की संस्कृति है। जहां लज्जा नहीं रहती है, वहां सब कुछ रहने के बाद भी कुछ रहने का औचित्य ही नहीं बनता है। लज्जा मानव की गरिमा है। अगर इसे संस्कृति से हटा दिया जाए तो पशु और मनुष्य में कोई अंतर हीं नहीं रह रह जाएगा। उन्होंने कहा कि लोग विवाह से पहले ही पत्नी के साथ फोटो खिंचवा कर दूसरे को, मित्र को भेज देते हैं। मनुष्य को गरिमा और लज्जा (शर्म) का ख्याल रखना चाहिए। यहीं कारण है कि हम संस्कृति को भूल जाने के कारण सभी साधन रहने के बाद भी हम निराश हैं।

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