यदि कोई निंदा कर रहा है तो उससे विचलित न होकर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि मेरे द्वारा कोई निन्दित कर्म तो नहीं हो रहा है-स्वामी राजनारायणाचार्य
ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार से शुगर की बिमारी सदा के लिये ठीक नहीं हआ करती उसे कंट्रोल में रखने के लिए साधन,संयम के साथ आजीवन दवा लेनी पड़ती है,ठीक उसी प्रकार से मनुष्य जीवन से काम,क्रोध,अहंकार,लोभ,ईर्ष्या-द्वेष सदा के लिए समाप्त नहीं होते,उसे कंट्रोल करने के लिए साधन,भजन,सत्संग,भगवान् की आराधना में मन को लगाना ही पड़ता है।
देवताओं के राजा इन्द्र का पद भी स्थायी नहीं होता तो प्रारब्ध से प्राप्त कोई भी पद स्थायी कैसे हो सकता है।
यदि कोई निंदा कर रहा है तो उससे विचलित न होकर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि मेरे द्वारा कोई निन्दित कर्म तो नहीं हो रहा है।
किसी भी मनुष्य का सर्वविध पतन निन्दा से न होकर निन्दितकर्मों को करने से ही होता है।