जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं-डा० राकेश कुमार राय

जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं-डा० राकेश कुमार राय
शिक्षक दिवस के अवसर पर श्री बजरंग ग्रूप ऑफ़ कॉलेजेज, बकूलियापुर, ग़ाज़ीपुर के प्रांगड़ में माँ सरस्वती और भारतीय संस्कृति के संवाहक, शिक्षाविद्, दार्शनिक एवं पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम को उत्साह पूर्वक मनाया गया।
गुरु शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा-डा०राकेश
इस अवसर पर डायरेक्टर डा०राकेश कुमार राय ने चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं दी।उन्होंने कहा की गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को अलग अलग रूप-रंग के फूलों से सजाता है।
जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने के लिए प्रेरित करता है। आज शिक्षा को हर घर तक पहुंचाने के लिए तमाम सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षकों को भी वह सम्मान मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है।
आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं।
इसे देखकर हमारी संस्कृति की इस अमूल्य गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रश्नचिह्न नजर आने लगता है। विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों का ही दायित्व है कि वे इस महान परंपरा को बेहतर ढंग से समझें और एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करें।इस अवसर पर ओमप्रकाश राय, प्रधानाध्यापिका अंजना राय, धर्मेंद्र कुमार लाल एवं छात्रों के साथ विद्यालय परिवार के समस्त सदस्य मौजूद रहे।