औषधीय पंडित रंग बहादुर सिंह द्वारा प्रमाणित, वास्तविक और व्यवहारिक आयुष चिकित्सा माडल अनुकरणीय: सूर्य कुमार सिंह

औषधीय पंडित रंग बहादुर सिंह द्वारा प्रमाणित, वास्तविक और व्यवहारिक आयुष चिकित्सा माडल अनुकरणीय: सूर्य कुमार सिंह
गाजीपुर। लोक आयुर्वेद ज्ञान गंगा प्रसार क्रम में 2 वर्षों से अधिक सभी पुरातन और नवीन आयुष ग्रंथी का विस्तृत अध्ययन, मनन और प्रमाणित उपलब्ध आयुर्वेदिक रोग निवारण विधाओं का उपयोग रोगों के अनुसार आम रोगी व्यक्ति पर करके हजारों साध्य एवं असाध्य रोगियों को ब्याधि मुक्त कराने का उल्लेखनीय और सर्वत्र सराहनीय कार्य जनपद के ग्राम अमौरा विकासखंड भदौरा, तहसील-सेवराई निवासी सेवा भावनाओं से प्रेरित और तन—मन—धन से समर्पित रंग बहादुर सिंह पुत्र स्व० तिलकू सिंह कर रहे है। श्री सिंह ने परंपरागत खेती से हटकर औषधीय खेती का बीड़ा उठाया और अपने श्री राम जैविक हर्बल फार्म रकबा 2 हेक्टेयर में विगत 2२ वर्षों से 12—15 जड़ी—बूटी की खेती और सौ से अधिक प्रसंस्कृत शुद्ध आयुर्वेदिक औषधियों को उत्पादित करके हजारों साध्य और असाध्य रोगियों को समूल निरोग कर चुके है। निरोग हुए हजारों मरीज ही आज इनके प्रबल प्रचारक हैं और इसी के परिणाम है कि श्री सिंह के आवास अमौरा में प्रात: 6 से 12:0 तक लगभग प्रतिदिन दर्जनों की तादाद में साध्य और असाध्य रोगी स्वत: उपस्थित होकर उत्पादित जैविक शुद्ध आयुर्वेदिक हर्बल उत्पादों का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। सूच्य है कि 201 में एक हेक्टयर औषधीय खेती का निरीक्षण कराके राज्य सरकार ने वर्ष 203 में इनकी खेती को हर्बल गार्डन की मान्यता प्रदान की और श्री राम हर्बल फार्म वैधानिक रूप से अस्तित्व में आया। वर्ष 204 में श्री सिंह की मुलाकात तत्कालीन राष्ट्रपति डा० एपीजे अब्दुल कलाम से देश भर के 18 नामचीन औषधीय उत्पादक कृषकों के साथ हुई और डा०कलाम ने औषधीय उत्पाद के साथ प्रसंस्करण को बाजारों तक पहुंचाने का दायित्व सौंपा।
श्री सिंह ने डा० कलाम के निर्देशों का अक्षरसह पालन करते हुए वर्ष 207 में कृषि मंत्री भारत सरकार शरद पवार से मिले और इसी के बाद जिला गाजीपुर को औद्यानिक मिशन से जोडक़र जड़ी—बूटी खेती पर अनुदान राशि श्री सिंह को प्राप्त होना शुरू हुआ। 25—26 मार्च 2२2 को अमौरा में औषधीय पादप बोर्ड नई दिल्ली द्वारा दो दिवसीय औषधीय कृषक सम्मेलन में क्षेत्रीय निदेशक अरु ण चंदन ने स्वाध्याय द्वारा प्रमाणित आयुष औषधियों का श्री सिंह के आयुष ग्रंथों के स्वाध्याय और प्रमाणित शुद्ध जैविक औषधियों द्वारा संचालित स्थानीय आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को रंग बहादुर सिंह मॉडल का स्वरूप देकर उनकी सराहना की। श्री सिंह ने श्रद्घापूर्वक पूर्ण निष्ठा व लगन से जैविक हर्बल शुद्ध स्वत: उत्पादित आयुर्वेदिक औषधियों की नि:स्वार्थ सेवा व चमत्कार आज रंग ला रही है। इसी के परिणाम है कि आज हजारों की तादात में गाल ब्लैडर सहित सभी पथरी के रोग सुबह नाश्ता के बाद और रात्रि में भोजन के बाद शहद के साथ गोखरू और शतावरी स्वरस का उपयोग करके रोग मुक्त हो चुके हैं और बीएचयू आयुष विभाग में इसके पेटेेंंट की प्रक्रिया चल रही है। उदर विकार में एलोवेरा स्वरस में एक चुटकी सेधा नमक सुबह खाली पेट लेने, बवासीर—भकंदर निवारण के लिए ब्लूसिमियां अर्क सुबह—शाम और हर्रे एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ सोते समय रात में लेना पड़ता है। गठिया—साइटिका आदि हड्डी दर्द निवारण के लिए अश्वगंधा और शतावरी चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर सुबह—शाम एक-एक चम्मच दो चुटकी सोठ पाउडर मिलाकर लेने से कुछ समय बाद रोग मुक्ति मिल जाती है। ज्वर संक्रमण और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गिलोय (अमृता) स्वरस सुबह—शाम 25 एम एल लेने की व्यवहारिक सलाह दी गई है, वहीं हृदय रोग से निजात पाने के लिए अर्जुन की छाल पका क्वाथ समान मात्रा में आंवला जूस, मधु के साथ लेना प्रमाणित हो चुका है। इसी क्रम में कान संबंधी व्याधियों जहां कपालभाति, प्राणायाम से लाभदायक सिद्ध हुआ है, वही कान में मवाद आदि से मुक्ति के लिए श्वान (कुत्ते) का मूत्र 2—2 बूंद सुबह—शाम डालने से एक सप्ताह में रोग मुक्ति प्रमाणित है। आंख संबंधी व्याधियों के लिए सफेद प्याज व नींबू रस मिश्रित दवा सुबह—शाम डालने से रोग से मुक्ति मिल जाती है। आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए सौंफ, ताल मिश्री व बादाम समान मात्रा में चूर्ण बनाकर रात्रि भोजनोपरांत एक-एक चम्मच 6 दिन तक लेने से रोशनी बढ़ाने के चमत्कारिक परिणाम सामने आना आम बात है। शर्त है कि रात्रि में चूर्ण लेनेे के बाद पानी नहीं पीना है। इसी प्रकार आम संक्रमण, एलर्जी, सर्दी-जुकाम, खांसी के लिए अजवाइन चूर्ण 2 ग्राम, पिसी हल्दी 2 ग्राम और एलोबेरा स्वरस 25 एम एल और उतनी ही मात्रा में गुनगुना पानी मिलाकर सुबह—शाम पीने से त्वरित राहत मिलता है। श्वेत कुष्ट से मुक्ति हेतु चित्रक की जड़ को गोमूत्र में पतले पानी के तरफ पीसकर जहां दागों पर सुबह—शाम लगाना है, वहीं अश्वगंधा और गिलोय सुबह—शाम पीने से तीन—चार माह में रोग से मुक्ति मिल जाती है।
प्रोस्ट्रेट आदि सूजन समस्या के निदान हेतु 3—3 एम$ एल दूधी और हल्दी के स्वरस या काढ़ा सुबह—शाम लेने से रोग मुक्ति मिल जाती है। साइनस रोग से निजात पाने के लिए शुद्ध गाय का घी सुबह—शाम दोनों नासिका छिद्रों में एक-एक बूंद डालने से रोग मुक्ति प्रमाणित है। वही एक्जिमा, दाद—दिनाय, खाज-खुजली के लिए कालमेघ का चूर्ण और कुटकी चूर्ण और एलोवेरा जूस 25 एम$एल सुबह—शाम सेवन करने से चर्म रोग से मुक्ति आम बात हो गई। असाध्य माना जाने वाला कैंसर भी आयुर्वेदिक जड़ी—बूटियों के साथ परहेज करने से कुछ महीनों में रोग मुक्ति से संभव हो गया है और सैकड़ों की तादाद में कैंसर रोगी रोग मुक्त हो चुके है। इस प्रकार आयुर्वेदिक दवाओं. जड़ी—बूटियों, स्वांस चिकित्सा, योगासन, प्राणायाम और रोगानुसार संयम परहेज और पौष्टिक आहार एवं सनातनी दिनचर्या अपना कर ऋषि—मुनियों द्वारा प्रमाणित शतायु परंपरा को व्यवहारिक स्वरूप दिला कर आज भी कायम रखने के लिए सराहनीय भागीरथ प्रयास जारी है। वनस्पतियों की गुप्त शक्तियों और उनके अद्भुत प्रयोग द्वारा मनोकामना सिद्धि और पारिवारिक लाभार्थ चमत्कारी गुणों की प्रस्तुतीकरण तांत्रिक प्रयोग का उपलब्ध ग्रंथों में विस्तृत वर्णन मिलता है और इनके व्यवहारिक प्रयोग भी प्रासंगिक सिद्ध हो रहे है। जैसेे काली हल्दी—गिलोय और एलोबेरा गूदा समान भाग पीसकर मानव ललाट पर बड़ा टीका लगाने पर सामने से आने वाला व्यक्ति सम्मोहित होकर वसीकरण से प्रभावित होना सिद्ध है। इसी प्रकार दरिद्रता निवारण और आॢथक संपन्नता के लिए के लिए कैश बाक्स या तिजोरी में काली हल्दी की गांठ लाल कपड़े में लपेटकर अगरबत्ती दिखाकर दीपावली की रात्रि रखने से संपन्नता भी सिद्ध है। शतावरी के जड़ को गंगाजल से धोकर लाल कपड़े में लपेट अगरवत्ती दिखा कैश बाक्स में रखने से भी संपन्नता प्रमाणित है। प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के रविवार या मंगलवार को सर्पगंधा की जड़ को जंतर रूपी बांह या कमर के उपर धारण करने से मान्यताआें के अनुसार उस वर्ष सर्पदंश से मुक्ति मिल जाती है। इसी प्रकार सर्पगंधा की लकड़ी काटकर बांह या गले में धारण करने से मिर्गी रोग शांत होना बताया गया है।
आदिवासी इलाकों में सर्पगंधा की जड़ को योनि पर रखकर शीघ्र प्रसव कराना आमबात है। इस प्रकार हजारों लाखों जड़ी—बूटियों, औषधीय पौधों के जनहित में लिपिवद्ध नुस्खों पर आज जनहित में व्यापक शोध कार्यक्रम जहां जरूरी है, वहीं औषधीय प्लांटिंग मैटेरियल, अत्याधुनिक प्रशिक्षण और प्रसंस्करण प्रक्रिया को आज की जरूरत बताई गई है। इसी के साथ—साथ गुणवत्ता युक्त उत्पादन और स्थानीय क्रय केंद्र एवं वैश्विक विपणन व्यवस्था जनहित में जिलेवार अनिवार्य है। ताकि दादी मां—नानी मां के घर—घर नुसखों को पुनर्जीवित किया जा सके। औषधीय पंडित रंग बहादुर सिंह का आयुष चिकित्सा मॉडल गाजीपुर से शुरू होकर रोगमुक्त हजारों मरीजों के माध्यम से उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के सभी राज्यों में लोकप्रिय होता जा रहा है। जरूरत है इसके संरक्षण—संवर्धन और चुस्त—दुरु स्त व्यवस्था तत्काल मुहैया कराने की।