बिना प्राण प्रतिष्ठा मूर्ति की पूजा करने से होता है शोक- जीयर स्वामी
बलिया जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के पास आयोजित चातुर्मास ब्रत के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न पूज्य श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा की शास्त्र में बताया गया है कि दुनिया में एक हीं भगवान हैं शालिग्राम।इस भगवान का कभी प्राण, प्रतिष्ठा नही किया जाता है। बाकी जितने भी मनुष्य द्वारा मुर्ति की स्थापना की जाती है। प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यदि दो चार दिन भोग न लगे तो फिर से प्राण प्रतिष्ठा करीए। नही तो ऐसे बिना प्राण प्रतिष्ठा, बिना प्रतिष्ठित मूर्ति की पूजा करने से शोक होता है, भय होता है। अनेक प्रकार के यश कृति का समापन होता है, अपयश होता है। अतः नही करना चाहिए। जो खंडित मुर्ति हो उसका भी पूजा नही करना चाहिए। अन्यथा भय, शोक, उपद्रव, अशांति होता है। अलग अलग व्यक्ति की अलग अलग मर्यादा है।
शास्त्र कहता है कि सभी व्यक्ति एक ही मर्यादा में रहेगा। यह ठीक नही है। गृहस्थ आश्रम में रहकर विवाह करके कोई संकल्प ले लिया कि हमें पत्नी से मतलब ही नही है, उनको पाप लगेगा। महा नर्क हो जाएगा। ऐसा नही की विवाह कर लिया फिर दाढ़ी बढा करके, दंड कमंडल ले करके घुमने लगे। यह कौन तरीका है। काहे को विवाह किया। घर परिवार को सजाओ, शिक्षित करो, बच्चों को संस्कार दो, बेटा बेटी का विवाह करो, सारे परिवार के लोगों को संवर्धन कर दो। तब वैराग्य धारण करो ऐसा बताया गया है। तब भगवान प्रसन्न होगें, तब आत्म कल्याण होगा।
पात्र के अनुसार ही दण्ड भोगना पड़ता है। बड़े लोगों द्वारा थोड़ी सी ही चूक होती है, उसका बहुत बड़ा परिणाम भोगना पडेगा। जो जितना पात्र का अधिकारी होगा, उसी के अनुसार दंड का अधिकारी होगा। जो जितना बड़ा होता है, उसके अनुसार वैसा हीं दण्ड की प्रक्रिया होती है। यदि किसी के घर पर कौवा तथा गिद्ध बैठ जाए तो यदि उस घर वाले का कोई सामर्थ्य नही हो तो सुंदरकाण्ड का पाठ कर ले। हनुमान चालीसा का पाठ कर ले, उसी से मार्जन हो जाएगा। कोई धनी व्यक्ति हो तो उसको पूजन पाठ, भोग भंडारा इत्यादि करना पड़ेगा। ऐसा बताया गया है। इसीलिए सबके लिए अलग अलग व्यवस्था बनाया गया है। सबके लिए एक ही नियम लागू नही हो सकता है। जैसे की गलती एक पागल व्यक्ति करता है तो उसे थोड़ा सा डांट करके छोड़ा जा सकता है। परंतु वहीं गलती यदि बड़े अधिकारी या पढ़े लिखे लोग करते हैं तो उन्हे कठोर दण्ड भोगना पड़ता है।