बड़े लोगों के सान्निध्य में रहकर अहंकारी न बने- जीयर स्वामी

बड़े लोगों के सान्निध्य में रहकर अहंकारी न बने- जीयर स्वामी
बलिया जनेश्वर मिश्रा सेतु के पास आयोजित चातुर्मास ब्रत के दौरान श्री लक्ष्मी प्रपन्न श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं से कहा की कि गोधूलि बेला में अध्ययन, भोजन, निद्रा और मैथून वर्जित साधन। शक्ति और सान्निध्य का करे सदुपयोग। किसी से आग्रह करें, दुराग्रह नहीं। बड़े लोगों के सान्निध्य में रहकर अहंकारी नहीं बनें। उनके सान्निध्य में रहकर अहंकार करने वाला अपने साथ स्वामी को भी अपयश का भागी बनाता है। पूज्य जीयर स्वामी ने कहा की साधन, शक्ति, पद और बड़े लोगों के सान्निध्य का सदुपयोग करना चाहिए, दुरूपयोग कतई नही।उन्होंने कहा कि बड़े लोगों के सान्निध्य में मर्यादा के साथ रहकर अपना मान-प्रतिष्ठा और यश बढ़ाना चाहिए। किसी के साथ अपचार नहीं करना चाहिए। बैकुंठ में भगवान के मुख्य द्वारपाल जय-विजय अहंकार वश एक दिन सनकादि ऋषियों को परमात्मा के दर्शन से वंचित कर दिये। सनकादियों ने तीन बार प्रयास किया, लेकिन अन्दर नहीं जाने दिये। ऋषि जय-विजय के अमर्यादित व्यवहार से क्रोधित होकर सनकादि ने उन्हें राक्षस बनने का शाप दे दिया। शाप की बात सुन भगवान ने कहा कि ऐसा ही होगा। संतों की वाणी व्यर्थ नहीं जाती। जय-विजय अपने कृत्य से पश्चाताप् करते हुए क्षमा मांगे। सनकादियों ने कहा कि हम लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये अपने कर्तव्य में लगे थे। भगवान ने कहा कि इन्हें विचार कर हम तक संदेश पहुंचाना चाहिए था। एक बार लक्ष्मी जी को भी यह प्रवेश से रोक दिए थे। जय विजय जल्द से मुक्ति का आग्रह किए। ऋषियों ने कहा कि भगवान की भक्ति करने पर राक्षस कुल में सात जन्म या विरोधी बनकर तीन जन्म लेना होगा। जय-विजय भगवान विरोधी बनकर तीन जन्म में मुक्ति स्वीकार किए। यह पहले जन्म में हिरण्याक्ष–हिरण्यकश्यपु दूसरे जन्म में रावण-कुंभकरण और तीसरे जन्म में शिशुपाल-बकरदंत बने।
श्री स्वामी जी ने कहा कि गोधूलि बेला में स्वाध्याय, निद्रा, भोजन और मैथून नहीं करनी चाहिए। गोधूलि बेला में स्वाध्याय से स्मरण शक्ति क्षीण होती है। निद्रा से आयु क्षीण होती है। भोजन से स्वास्थ्य प्रभावित होता है। मैथुन से उत्पन्न संतान अत्याचारी और व्यभिचारी होती है। संतानोत्पत्ति नहीं भी हो तो शरीर पर हानिकारक प्रभाव होता है।