June 24, 2025

एक यैसा चौकठ जहां मत्था टेकने से सर्प के जहर से मिलता है छुटकारा

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एक यैसा चौकठ जहां मत्था टेकने से सर्प के जहर से मिलता है छुटकारा

सदियों से विश्‍वम्‍भरपुर गांव बना हुवा है लोगों के आस्‍था और श्रद्धा का केन्‍द्र

गाजीपुर जनपद का इतिहास अपने भीतर कई आश्चर्यजनक अविश्वसनीय किन्तु सत्य घटनाओं का इतिहास आज भी छुपाये रक्खा है। यहां आस्था और विश्वास की कड़ी इतनी मजबूत है कि भौतिक संसार के इस वैज्ञानिक युग में भी चमत्कार की एक नहीं सैकड़ों घटनायें देखने, सुनने को मिलती रही हैं। सावित्री यदि अपने पतिव्रता के बल पर अपने मृत पति सत्यवान को जीवित कर लेने की क्षमता रखती थी तो यहां सर्प काटने से मरा व्यक्ति भी मात्र तक्षक बाबा (दक्षबाबा) की देवढ़ी पर पहुंच जाने से ही जीवनदान प्राप्त कर लेता है। भयंकर से भयंकर सांप का डसा व्यक्ति भी दंस सहने के बाद यदि सच्चे मनसे तक्षक बाबा को दूर-दराज इलाके में भी रहकर अगर तक्षक बाबा को स्मरण कर अपने जीवन की भीख मांगता है तो उसे तक्षक बाबा जीवनदान दे देते हैं।
जिला मुख्यालय से पूरब करीमुद्दीन पुर थानान्तर्गत लगभग 40 किमी दूर विश्वम्भरपुर गांव में तक्षक बाबा का स्थान है। इसे हम मन्दिर भी नहीं कह सकते हैं मात्र एक पुराना मिट्टी का कच्चा मकान है। यह एक ऐसा स्थान है जहां रोजाना चमत्कार होते रहते हैं। सत्यबोध और प्रमाणिक साक्षात्कार भी होता है। जनपद के करीमुद्दीनपुर थाना क्षेत्र के विश्वम्भपुर गांव में यह टूटा कच्चा मकान हजारों लोगों की प्रबल आस्था का प्रतीक है, जहाँ मात्र माथा टेक लेने से ही सर्प द्वारा काटे गये व्यक्ति के शरीर से विष गायब हो जाता है और आदमी चंगा होकर बैठ जाता है। यहां से जुड़ी तमाम तरह की अजिबोगरीब किन्तु सत्य कहानियाँ सुनने को मिलती है। यहां के बुजुर्गों ने बताया कि हम अपने बाप-दादा से सुनते आ रहे हैं कि जब मुगल सम्राज्य था उस समय तलवार के बल पर मुगलों ने धर्म परिवर्तन का दौर चला रखा था। इसी बीच वर्तमान मउनाथ भंजन जनपद के कोपागंज के पास काछी गांव में मुगलों के आतंक का कहर टूटा था। उनकी शर्त यह थी कि धर्म परिवर्तन करो या मनचाहा टैक्स अदा करो। यह घटना औरंगजेब के शासनकाल की मानी जाती है। इस कहर के शिकार हुए उस गांव के दो निवासी बानराय व फकीर राय जो सगे भाई थे, दोनों को मुगल सैनिकों ने पकड़कर जेल में डाल दिया था।जेल में रात्रि के अंतिम पहर में उन दोनों सगे भाईयों के सामने बारी बारी से तीन अद्भुत अलौकिक शक्तियां ज्येाति स्वरूप होकर भीतर प्रकट हुई तथा मनुष्य का रूप धारण कर उनसे पूछा कि क्या तुम लोग जेल से मुक्त होना चाहते हो? तो दोनों भाईयों ने एक स्वर में हाँ कहा। उन तीनों अलौकिक शक्तियों में पहली शक्ति तक्षकबाबा (दक्ष बाबा), दूसरी शक्ति खोराबाबा, तीसरी शक्ति आदि ब्रम्ह बाबा थे। इन तीनों शक्तियों ने कहा कि यदि जेल से मुक्त होना चाहते हो तो मेरे पीछे-पीछे चलो। जब ये तीनों शक्तियां आगे चलीं और पीछे से दोनों भाई चले तो जेल का ताला अपने आप खुल गया और बाहर निकल कर चल पड़े।
वहां उपस्थित मुगल सैनिकों ने देखा कि दो बंदी भाग रहे हैं तो उन्होंने उनका पीछा किया, मगर कुछ दूरी तक पीछा किया तो उन्होंने देखा कि भारी तादात में एक से बढ़कर एक विषैले सर्प चले जा रहे हैं और उनके पीछे दोनो बंदी भी । तब सैनिकों ने आगे बढ़कर उनका रास्ता रोकना चाहा। जैसे ही सैनिकों ने रास्ता रोका सर्पों ने उनके उपर हमला बोल दिया। परिणाम स्वरूप सैनिक अपनी जान बचाने के लिये वापस भाग खड़े हुए। जबकि दोनों भाई सांपों के पीछे चलते हुए सुबह होते होते विश्वम्भरपुर के निकट उतरांव गांव तक पहुंच आये। उसके बाद उन्होंने देखा कि वे जिन शक्तियों के साथ आये थे वे शक्तियां गायब हो गयीं। इसके बाद दोनों भाई यहीं रहने की व्यवस्था बनाये। यहां नारायणपुर (जनपद बलिया) के रहने वाले उनके रिश्तेदानों की छावनी विश्वम्भरपुर थी सो उनके रिश्तेदारों ने उन्हें यहां बसने का आग्रह किया और विश्वम्भरपुर छावनी उन्हें दे दी। दोनों भाई तब से विश्वम्भरपुर अपना बसेरा बनाकर रहने लगे। कुछ दिनों बाद ही इन दोनों के समक्ष पुनः तीनों अलौकिक शक्तियां प्रकट हुई तब इन भाईयों ने आग्रह किया जिस प्रकार आप हमें जेल से मुक्त कराकर हमारे धर्म की रक्षा किये हैं वैसे ही आप सर्वदा हमारी रक्षा करते रहें, हम आपकी पूजा आराधना करते रहेंगे। कृपया आप हमें अपने पूजा की विधि बतायें। इस पर तक्षक बाबा ने कहा कि हमारी पूजा साल में मात्र एक बार नागपंचमी के दिन 21 नाद गाय का दूध व इसमें धान का लावा चढ़ा देना। उस वक्त दोनों भाईयों ने कहा कि बाबा इस समय तो हम किसी तरह इतनी बढ़ी मात्रा में दूध और धान का लावा जुटाकर आपकी पूजा कर देंगें मगर भविष्य में आने वाली हमारी पीढ़ीयां आपकी इस पूजा को कर सकेगी कि नहीं इसमें हमें संशय है। इसलिए आप कोई आसान पूजा बताने की कृपा करें। तब उन्होनें कहा कि जाओ मात्र इक्किस दोना दूध और लावा चढ़ा देना। तुम लोगों की सर्प से हमेंशा रक्षा होती रहेगी। तबसे आज तक यह पूजा निर्वाध रूप से जारी है।
सांप का काटा कोई भी व्यक्ति इस घर के चौखट पर आकर अपना मत्था टेक लेता है अथवा दूर दराज रहकर भी तक्षक बाबा के नाम का स्मरण कर लेता है तो वह पुन: भला चंगा हो जाता है।यहां तक की दुनिया के किसी कोने में किसी ब्यक्ति को जो दक्ष बाबा में अपनी आस्था रखता हो अगर उसे सर्प अगर काट लेता है तो वह मात्र बाबा का स्मरण कर सर्प के विष से मुक्ति की कामना करता है तो वह पुन; सामान्य स्थिति को प्राप्त कर लेता है मगर शर्त यह रहती है की इस दौरान वह ईलाज न कराये और अपने घर पहूंचने से पहले बाबा के स्थान पर आकर अपना मत्था अवश्य टेके। इतना सिद्ध पीठ होने के बावजूद भी यहां पहूंचने के लिए मुख्य मार्ग से सीधा जुडाव नही है। बीच में रेलवे लाईन पड जाने की बजह से यहां लोग दुबिहां मोड से होकर आते है या भरौली कला से होकर आते है। यहां के रहने वाले देवनरायन राय परिवार के लोग आज भी नाग पंचमी के दिन गाय के दूध व लावा से बाबा की पूजा करते है। साथ ही क्षेत्र के लोग भी व बाहर रहने वाले लोग भी जहां रहते है वहीं इसी प्रकार से बाबा का दूध व लावा से पूजन कर देते है। यह बाबा का ही प्रभाव है कि आस पास के गांव में अब तक सर्प किसी को कोइ नुकसान नही पहूंचाये है। लोग यहा से जल ले जाकर अपने घरो में छिडक देते है जिससे घरों में सर्प नही निकलते है।

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