June 24, 2025

ईश्वर अनन्त है और सभी प्राणियों की अंतरात्मा उसी का अंश है। प्रत्येक जीव के भीतर परमात्मा विद्यमान है। धरती के एक-एक कण में परमात्मा है-आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी

आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी जी ने कहा – आधुनिक युग में अधिकतर लोग भोग-वासनाओं में ही फंसे रहते हैं। वे पूरी तरह से भौतिक जीवन में व्यस्त हैं, और बाहरी जगत को वास्तविक मानते हैं। सत्य है – भौतिक वस्तुएँ अस्थायी हैं और सच्चा सुख नहीं दे सकतीं। इसलिए स्थायी सुख के लिए हमें अपनी चेतना को भीतर की ओर मोड़ना होगा ..! आज प्रत्येक व्यक्ति सुख और शान्ति की चाहत में भटक रहा है। उसे लगता है शायद भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति और धन की पूर्ति उसे सुख और शान्ति प्रदान कर देगी लेकिन सब कुछ प्राप्त करने के बाद भी हम दु:खी परेशान अशान्त हैं। इसका कारण यही है कि भौतिक वस्तुओं से चिरस्थायी सुख-शान्ति कभी भी प्राप्त नहीं की जा सकती। शान्ति बाहर से नहीं भीतर से ही प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि संत कबीर, रविदासजी जैसे अनेक संत-महात्माओं के पास बहुत अधिक संसाधन, धन नहीं था। उनके आनन्द में रहने का कारण यही था कि उन्होंने भीतर में गुरु के माध्यम से उस परम धन ईश्वर को प्राप्त कर लिया था। वस्तुत: सुख तो चेतना की आंतरिक अवस्था है जो निर्णय करती है कि हम संसार को कैसे देखते हैं और उसे कैसे अनुभूत करते हैं। सुख का आंतरिक स्रोत हमारी आत्मा है वहीं उसका मूल स्रोत है। सुख आत्मा का ही कार्य अर्थात् उसे होने वाला प्रभाव है। आनन्द के अपने इस आंतरिक स्रोत से सम्पर्क खोकर जो सुख आप बाह्य परिस्थितियों में अनुभूत करते हैं वह भ्रमात्मक होता है। आप उनकी दया पर निर्भर रहते हैं। वेदांत कहता है – इस प्रकार के कारण पर निर्भर रहने वाला सुख दु:ख का ही दूसरा रूप है, क्योंकि ये भौतिक कारण तो कभी भी हमसे छीने जा सकते हैं। अत: बिना कारण सुखी रहना हमारी आंतरिक आकांक्षा है …।

पूज्य “आचार्यश्री” ने कहा – आनन्द चेतना की हमारे साथ सदा रहने वाली अवस्था है। लेकिन यह प्रायः सभी प्रकार के चित्त विक्षेपों द्वारा आवृत रहती है। जिस प्रकार सूर्योदय का सुन्दर दृश्य बादलों के द्वारा छिपा लिया जाता है, उसी प्रकार हमारा आंतरिक सुख भी हमारी दैनिक चिन्ताओं से ढँक लिया जाता है। इस भीतरी साम्राज्य में ही सच्चा सुख है। आप इस आनन्द को ही अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाइए, फिर सभी कुछ आपकी इच्छानुकूल आपको स्वत: ही प्राप्त होता जायेगा। अत: उच्चतम यानी आत्मा की खोज करें, फिर सब कुछ आपके पास स्वत: चला आयेगा। हमारे वेद कहते हैं कि आत्मा का साक्षात्कार पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु के द्वारा ही करवाया जाता है। “ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमल सहज सुख राशी ..”। ईश्वर अनन्त है और सभी प्राणियों की अंतरात्मा उसी का अंश है। प्रत्येक जीव के भीतर परमात्मा विद्यमान है। धरती के एक-एक कण में परमात्मा है। हर जड़-चेतन सत्ता के भीतर ईश्वर शुद्ध चेतना के रूप में प्रतिष्ठित हैं, हृदय में स्थित है, सद्गुरु कृपा व सद्ज्ञान के द्वारा ही उसे जाना जा सकता है।इसलिए हमें अपनी चेतना को श्रेष्ठ कार्यों में लगाकर उसे ऊर्ध्वमुखी बनाना चाहिए। उसी परमात्मा का साक्षात्कार जब हम अपने अंतर्घट में कर पायेंगे, तभी जीवन कल्याण की ओर बढ़ पायेगा। अंतरमुख-वृत्ति सत्त्व में वृद्धि के कारण मन की प्रेरक शक्ति है। आपको योग क्रिया, प्रत्याहार (अमूर्त) के माध्यम से मन को आत्म-निरीक्षण करने या स्वयं की ओर मुड़ने की कला सीखनी चाहिए। जो लोग इस अभ्यास को जानते हैं, वे वास्तव में शान्तिपूर्ण व आनन्दपूर्ण जीवन जीते हैं।

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