“गंगा तट पर गूंजा सबका साथ हो गंगा साफ हो”

“गंगा तट पर गूंजा सबका साथ हो गंगा साफ हो”
“सफाई का प्रयास ही नदी की वास्तविक पूजा है”
” भारत के रग – रग में गंगा का वास है ” आइए संरक्षण करें !
मां गंगा सहित अन्य गंगा की सहायक नदियों में लोग अपने घर की बासी पूजा सामग्री साड़ियां / कपड़े भी डाल देते हैं। यह गंगा की पूजा है या उस पर अत्याचार ? वस्तुतः नदी की पूजा का अर्थ केवल घंटा बजाना नहीं, वरन उसकी सफाई है । यह प्रयास ही नदी की वास्तविक पूजा है । बृहस्पतिवार को गंगा में गंदगी न करने के लिए जागरूक करते हुए नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला ने सिद्धपीठ माता शीतला के प्रांगण दशाश्वमेध से राजेन्द्र प्रसाद घाट तक स्वच्छता की अलख जगाई । लाउडस्पीकर से गंगाष्टकम व द्वादश ज्योतिर्लिंगों का उच्चारण कर लोगों को स्वच्छता की सीख देते हुए राजेश शुक्ला ने कहा कि गंगा भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड व सनातनी अध्यात्म का सार हैं।
हमें गंगा को सहेजना होगा । गंगा स्वयं में एक संस्कार हैं इसे मैला न करें । 50 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका केवल गंगा के जल पर निर्भर है । 25 करोड़ लोग तो पूर्ण रूप से गंगाजल पर आश्रित हैं । गंगा आस्था ही नहीं आजीविका हैं । गंगा केवल जल का ही नहीं, बल्कि जीवन का भी स्रोत है । हमारे लिए गंगा नदी की तरह नहीं, बल्कि एक जागृत स्वरूप हैं । आइए , मां गंगा के आंचल को कचरे से बचाएं । गंगा का संरक्षण करें ।