June 25, 2025

संकटो से मुक्ति दिलाते हैं बाबा भंवरनाथ महादेव

बाबा भंवरनाथ महादेव

 

संकटो से मुक्ति दिलाते हैं बाबा भंवरनाथ महादेव

आजमगढ़ जिला मुख्यालय के पास बिराजमान है बाबा भंवरनाथ

देश विदेश में स्वयंभू या स्थापित शिव लिंगो में जहां काशी के बाबा विश्वनाथ. पशुपतिनाथ काठमांडू एवं देवघर में बिराजमान बाबा बैद्यनाथ का मा विशेष महत्व माना जाता है।उसी तरह आजमगढ़ के लोगों के लिए बाबा भंवरनाथ के दर्शन पूजन का महत्व है।
आजमगढ़ नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित मंदिर के बारे में मान्यता है की बाबा भंवरनाथ का दर्शन पूजन करने से बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों को संकटो से मुक्ति दिलाते हैं।शायद यही वजह है की जब भी शिव आराधना का पर्व आता है तो शहर एवं आस पास के लोग यहां बाबा के धाम में अवश्य हाजिरी लगाते हैं।यहां आने वाले सभी शिव भक्तों को विश्वास है की बाबा सदैव इस स्थान पर बिद्यमान रहते हैं।लोगों की धारणा है की पूरे शहर की रक्षा खुद बाबा भंवरनाथ जी करते हैं इस लिए इन्हे आजमगढ़ शहर का कोतवाल भी माना जाता है।


महाशिवरात्रि हो या सावन का पवित्र महीना लोग यहां पहुंच कर दर्शन करना नहीं भूलते।यहां तक की इस जनपद के शिव भक्त बाबा धाम जाने से पहले बाबा भंवरनाथ महादेव का जलाभिषेक करते हैं।मान्यता है की आजमगढ में शहर की सीमा में स्थापित सभी शिवालयों में दर्शन पूजन के बाद यहां आये बगैर शिव की आराधना पूरी नहीं मानी जाती।
लोगों का मानना है की नाम के अनुसार यहां दर्शन करने से किसी भी संकट से मुक्ति मिल जाती है और बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों की वर्ष पर्यन्त सुरक्षा करते हैं।
यहां महाशिवरात्रि के दिन विशाल मेले का आयोजन होता है।परम्परा के अनुसार शिव विवाह का भी भव्य आयोजन किया जाता है।
सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं की भारी भींड उमडती है।घंटो दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को लाईन में लग कर दर्शन करना पडता है।यहां श्रद्धालु मन्नत पूरी होने के पश्चात कडाही चढा कर वर्ष पर्यन्त सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

इस मंदिर के बारे में एक बात प्रचलित है की जब आजमगढ़ जनपद का अस्तित्व भी नहीं था।उस समय यहां पर केवल जंगल और झाडियां हुआ करती थी।उस समय यहां पर जनमानस का आना जाना नहीं था।लोग इस स्थान से गुजरते तक नहीं थे।बस चरवाहे अपनी गाय को चराने के लिए आते थे।गाये चरने में लग जाती थी और चरवाहे छांव में विश्राम किया करते थे।सूर्यास्त के साथ ही चरवाहे अपने पशुओं के साथ वापस हो जाते थे।
कुछ दिन के पश्चात एक दिन चरवाहे जब गायों को लेकर जंगल से घर लौटने पर दूध निकालने का प्रयास किये तो उन सभी गायों के थन से एक बूंद भी दूध नहीं निकला।उस दिन से नित्य यही होने लगा।दिन भर चराने के बाद घर लौटने पर एक बूंद भी दूध नहीं निकलता।यह देखकर सभी चरवाहे परेशान हो गये की आखिर हम लोग नित्य कडी धूप में अथक मेहनत कर के चराने के लिए लेकर जाते हैं और यह गायें एक बूंद भी दूध नहीं दे रही हैं।अगर यैसा ही चलता रहा तो हमारा और हमारे परिवार का भरण पोषण कैसे होगा।
जब चरवाहे अत्यधिक परेशान हो गये तो उन्होंने आपस में मिल कर एक योजना बनाई की अब हम लोग अपनी गायों को चराने के लिए उस क्षेत्र में लेकर जायेंगे तो विश्राम नहीं करेंगे।हम लोग बारिकी से अपनी अपनी गाय पर नजर रक्खेगें।ताकी हम लोग जान सके की दिन भर चराने के बाद भी हमारी गायें शाम को दूध क्यों नहीं देती हैं।

अगले दिन सभी चरवाहे अपनी अपनी गाय लेकर उसी क्षेत्र में पुनः चराने के लिए लेकर गये।चरवाहे भी विश्राम न कर के झाडियों के पीछे छिप कर अपनी अपनी गायों की निगरानी करने लगे।सभी गायें मस्ती में चर रहीं थी तभी सभी चरवाहों ने देखा की एक छोटा सा अबोध बालक बारी बारी से सभी गायों के पास जाकर उनका थन मुंह में लगा कर जल्दी जल्दी दूध पी रहा है।
यह सब अपनी जागती आंखों से देख कर चरवाहों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।वह सभी यह करामात देख कर बिल्कुल दंग रह गये।सभी चरवाहे अपनी अपनी लाठियां लेकर उस बालक की तरफ दौडे।नन्हा बालक चरवाहों को अपनी तरफ दौडते हुए आता देख कर भागने लगा।बालक आगे आगे चरवाहे पिछे पिछे।अचानक बालक एक स्थान पर रूका और वह बालक अदृश्य हो गया।
सभी चरवाहे यह घटना देख कर सकते में आ गये की बालक कहां गया।सभी चरवाहे उस स्थान पर जहां बालक अदृश्य हो गया था अपनी लाठियों से प्रहार करने लगे।प्रहार करते ही उस स्थान से एक दिव्य शिवलिंग प्रगट हो गया।जो बीच में से फटा था और उस फटे स्थान से हजारों की संख्या में भंवरे निकलने लगे।चरवाहों को यह समझते देर नहीं लगी की हमारी ही लाठियों से यह पत्थर फटा है।इस मंदिर के निर्माण के बारे में बताया जाता है की वर्ष 8 अक्टूबर 1951 को मंदिर निर्माण के लिए नींव रक्खी गई।13 दिसम्बर 1958 में बन कर तैयार हुआ।वर्तमान में यहां श्रद्धालुओं के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं मौजूद हैं।बाबा की महिमा केवल आजमगढ़ शहर तक ही सीमित नहीं है वल्कि अडोस पडोस के जनपद तक है।लोग श्रद्धा के साथ यहां आकर दर्शन पूजन करते हैं।

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