भोजन अल्पाहार होना चाहिए, जितने से शरीर की रक्षा हो सके-जीयर स्वामी
बलिया। जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच के पास चातुर्मास कर रहे पूज्य संत श्री जीयर स्वामी ने कहा की भोजन अल्पाहार होना चाहिए, जितने से शरीर की रक्षा हो सके। अग्राहय भोजन से शरीर रोगयुक्त होता है। मांसाहार मनुष्य के लिए उचित नहीं। इसके पक्ष में मांसाहारी जीवों की भोजन वृत्ति का उदाहरण नहीं देना चाहिए। मांसाहारी जीवों को यह ज्ञान नहीं होता कि क्षुद्धा तृप्ति के लिए जिसकी हत्या वे करते हैं, उसे पीड़ा भी हो रही है। जैसे अबोध बच्चा कहीं आग सुलगाकर उसके परिणाम से बेफिक्र हो आनंदित होता है। परन्तु मनुष्य को परिणाम का ज्ञान है।
इसलिये मानव को अपने स्वाद के लिये दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचानी चाहिए और इस संदर्भ में मांसाहारी जीवों का कुतर्क नहीं देना चाहिय। श्री जीयर स्वामी ने कहा कि प्रकृति के सभी जीव-जन्तु पर्यावरण को संतुलित करने के लिए बने हैं। ईश्वर ने जितने चराचर पदार्थों की सृष्टि की हैं, उनमें से कोई एक भी अनुपयोगी नहीं है। इन सबों की उपयोगिता प्रकृति-संतुलन में है। मानव सृष्टि का सबसे उत्तम प्राणी है, इसका पुनीत दायित्व ईश्वर-कृत सृष्टि का संरक्षण है। लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित मानव मन ही अपनी अकूत स्वार्थ पूर्ति के लिए प्राकृतिक सम्पदा का दोहन कर रहा है।
प्रकृति-रक्षक मानव ही प्रकृति-भंजक हो गया है। प्रकृति संरक्षण का मूल उपाय मानव-मन पर नियंत्रण करना है। इनका प्रकृति के संतुलन में बड़ा महत्व है। प्रकृति की व्यवस्था को प्रभावित करना ही पर्यावरण को दूषित करना है, प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने की जिम्मेवारी एकमात्र मानव पर ही है। मृत जानवरों को गिद्ध कुछ ही देर में चट कर जाते हैं। लेकिन जहां से ये प्रजाति विलुप्त हो रही हैं, वहां मृत जानवरों का शव सरकार और समाज के लिए समस्या बन जाता है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, जल एवं अन्न की बर्वादी पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है। इसकी सुरक्षा मानव का परम धर्म है