June 25, 2025

अश्लील दृष्यों से जन्मते हैं विकार-पूज्य जीयर स्वामी

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अश्लील दृष्यों से जन्मते हैं विकार-पूज्य जीयर स्वामी

बलिया एनएच से जनेश्वर मिश्र सेतु जाने वाले अप्रोच के किनारे चल रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन करते हुए पूज्य श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि अश्लील दृश्यों को देखने से मस्तिष्क में कुविचार उत्पन्न होते हैं। अश्लील दृश्य, अश्लील गीत व अश्लील वार्ता से मन में विकृति पैदा होती है, जिसकी स्मृति से चेतन मन में स्थायी रूप अंकित हो जाती है। इसके कारण सामान्य जीवन में विचलन का भय रहता है।

मानव जीवन अपने उद्देश्यों से भटक जाता है। परिवार, समाज व देश के स्तर पर अश्लील दृश्य व अश्लील गीतों के प्रति वर्जनात्मक संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। कहा कि अजामिल कनौज क्षेत्र के सदाचारी ब्राह्मण थे । वे दिनचर्या के तहत पूजा का फूल और तुलसी पत्र लेने वाटिका में गये थे। वहां उन्होंने एक लम्पट व्यक्ति को वेश्या के साथ अस्त-व्यस्त स्थिति में देखा। यह दृश्य उनके मानस पटल में बैठ गया । कुछ दिन उसी दृश्य की स्मृति में रमने के बाद वे भी वेश्यागामी हो गये। अपनी पत्नी व संतान को घर से निकाल कर वेश्या को स्थायी रुप से घर में बैठा दिये।

पूजा-पाठ व जपादि धार्मिक कृत्यों से विमुख हो गये। अपनी सम्पति समाप्त होने के बाद जीवन चापन के लिए चोरी-डकैती का सहारा लेने लगे। उस वेश्या से नौ संतानें उत्पन्न हुई। दसवीं संतान के गर्भ में आने के बाद तीर्थ यात्रा पर निकले संतों का एक समूह एक दिन अजामिल के घर पहुंचा। उसकी वेश्या पत्नी ने संतों का सत्कार किया।


जाते समय वक्त संतों ने आग्रह कि दसवीं पुत्र का नाम नारायण रखना। अजामिल का उस पुत्र में आसक्ति में बढ़ गयी और मृत्यु के समय जब यमदूत आये तो अजामिल डर से नारायण-नारायण पुकारने लगा। यमदूत नारायण भक्त जान लौट गये और विष्णुगण उसे ले गये, जिससे उसकी मुक्ति हो गयी। स्वामी जी ने कहा कि एक बार के अश्लील दृश्य ने अजामिल के जीवन को विद्रूप कर दिया। दूसरी तरफ संतों का मात्र एक दिन का सान्निध्य उसके जीवन को मंगलमय बना दिया।

सिर्फ तीन उंगली से करें हवन जाप

स्वामी जी ने कहा कि धर्म को जान कर करना चाहिए। बिना जाने नहीं। जैसे हवन करना धर्म है, लेकिन पांचों अंगुलियों के साथ आहूति नहीं देनी चाहिए। हवन व जाप में सिर्फ तीन अंगुलियां अंगुठा, मध्यमा व अनामिका का सहारा लेना चाहिए। यानी तीन अंगुलियों से ही हवन और जाप करना चाहिए। तर्जनी व कनिष्का को अलग रखना चाहिए।

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