मार्कंडेय महादेव धाम एक ऐसा धाम जहां स्वयं यमराज भी हुए थे पराजित

1 min read

 

 

सावन में उमड़ता है शिव भक्तों का जनसैलाब, दर्शन मात्र से दूर होती है अकाल मृत्यु सम्बंधी बाधा

श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। जो प्रतिदिन पूजन न कर सकें उन्हे सोमवार को शिव पूजा अवश्य करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए। सोमवार भगवान शंकर का प्रिय दिन माना जाता है। अतः सोमवार को शिव आराधना करने से फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव का एक दिव्य स्वरूप है श्री मारकंडेश्वर महादेव। इनका यह पावन धाम बनारस से करीब 30 किमी दूर बाराणसी गाजीपुर मार्ग पर गंगा-गोमती के संगम तट पर स्थित है। मार्कंडेय महादेव मंदिर शिवभक्तों के लिए बहुत खास माना जाता है। यहां सावन में शिवभक्तों का तांता लग जाता है। यह मंदिर वाराणसी गाजीपुर राजमार्ग पर कैथी गांव के पास है। यहां सावन माह में एक माह का मेला लगता है। मार्कण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहां आते हैं।

श्री मारकंडेश्वर महादेव धाम यह पूर्वांचल के प्रमुख देवालयों में से एक है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समकक्ष वाले इस धाम कि चर्चा श्री मार्कंडेय पुराण में भी की गयी है। आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, भौगोलिक, शैक्षिक ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण लगभग 15000 की आबादी वाला कैथी गांव, वाराणसी-गाजीपुर राष्टकृीय राजमार्ग के 28वें किलोमीटर पर स्थित है।

राजवारी रेलवे स्टेशन से इस गांव की दूरी दो किलोमीटर है। यहां के लोग विभिन्न क्षेत्रों में देश और विदेश में अपनी उत्कृष्ट योगदान दे रहे हैं। इसे स्थानीय लोग बाबा मारकंडेश्वर महादेव की अनुकम्पा मानते हैं।

मारकण्डेय महादेव की महत्ता

गंगा-गोमती के पावन तट व गर्गाचार्य ऋषि के तपोस्थली पर अवस्थित मारकण्डेय धाम आस्था का प्रतीक है। यहां प्रति वर्ष महाशिवरात्रि के अलावा सावन माह में काफी संख्या में कांवरिया बाबा का जलाभिषेक करते हैं। साथ ही भक्तगण यहां महीने में दो त्रयोदशी को भी भगवान भोलेनाथ का दर्शन पूजन कर धन्य होते हैं। कहा जाता है कि जब मारकण्डेय ऋ षि तपस्या में लीन थे तब यमराज खुद उन्हें लेने आए थे क्योंकि उनकी आयु पूरी हो चुकी थी। उस समय बालक मारकण्डेय ऋषि ने भगवान भोलेनाथ का आह्वान किया और साक्षात शिवशंकर प्रकट हुए । उन्होंने यमराज को जब मारकण्डेय जी को ले जाने से रोका तो वहीं पर दोनों में युद्ध हुआ। तत्पश्चात यमराज को पराजित होना पड़ा और वह वापस यमलोक चले गये। उस समय भगवान भोलेनाथ ने अपने परम भक्त मारकण्डेय ऋषि से कहा कि आज से जो भी श्रद्धालु या भक्त मेरे दर्शन को इस धाम में आयेगा वह पहले तुम्हारी पूजा करेगा उसके बाद मेरी। तब से यह आस्थाधाम मारकण्डेय महादेव के नाम से विख्यात हुआ।

पूर्वांचल व देश के हर भाग से आते हैं भक्त

पूर्वांचल के अलावा यहां देश के अन्य भागों से भी आस्थावानों का हुजूम आता है। मंदिर परिसर में ही बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई धर्मशालाएं व रैनवसेरा भी है जहां वह आराम करते हैं। सावन माह में प्रशासन की ओर से भी सुरक्षा के काफी इंतजाम किये जाते हैं। स्थानीय पुलिस के अलावा जरूरत पड़ने पर पीएसी के जवान भी यहां तैनात किये जाते हैं। सावन में कांवरियों के लिए जगह-जगह स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से काफी सुविधाएं भी दी जाती हैं। सावन मास में प्रतिदिन हजारों की संख्या में कांवरिया यहां पहुचते हैं, गंगाजी से का जल लेकर काशी विश्वनाथ, सारंगनाथ और त्रिलोचन महादेव तक कांवर यात्रा करने वालों की संख्या अधिक होती है।

होती है विभिन्न मनोकामना पूरी

प्रति वर्ष कार्तिक मास में भी मेला लगा रहता है। शिवरात्रि के अवसर पर यहां दो दिवसीय मेला लगता है प्रथम दिन शिव बारात के रूप में लाखों पुरुष दर्शन-पूजन हेतु पहुंचते हैं, वहीं इसके अगले दिन मंगलगीत और गाली गायन करती लाखों की संख्या में महिलाएं पूजन करती हैं। यह यहाँ की विशिष्टता है। जबकि किसी अन्य शिवालय पर दो दिवसीय शिवरात्रि उत्सव का आयोजन नहीं होता। यहां नियमित रूप से रुद्राभिषेक, शृंगार और पूजन अर्चन के अतिरिक्त संतान प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण का श्रवण और स्वास्थ्य लाभ और दीर्घ जीवन के लिए महा मृत्युंजय अनुष्ठान कराने का विशेष महत्व है। दूर-दूर से भक्त गण यहां अपनी मनोकामनापूर्ति के लिए पहुंचते हैं। वाराणसी जिले में सबसे अधिक संख्या में भक्तों का जमावड़ा इस धाम पर होता है

About Post Author

Copyright © All rights reserved 2020 बेबाक भारत | Newsphere by AF themes.
error: Content is protected !!