पांच सौ कन्याओं के जन्म पर कर चुकी हैं मुफ्त उपचार

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डाक्टर्स डे (01 जुलाई) पर विशेष

बेटियों के जन्म पर उत्सव मनाती हैं डॉ शिप्रा

चला रहीं अभियान,‘बेटियां होती हैं वरदान’

बेटियों के जन्म पर डॉ0 शिप्रा नहीं लेतीं कोई फीस

मिष्ठान वितरण के साथ प्रसूताओं का करती हैं सम्मान

पांच सौ कन्याओं के जन्म पर कर चुकी हैं मुफ्त उपचार

वाराणसी समाज में आज भी कुछ लोग बेटियों को बोझ समझते हैं।ऐसी मानसिकता के लोग बेटियों के जन्म पर उतनी खुशी जाहिर नहीं करते,जितना कि बेटे के जन्म पर।ऐसी ही मानसिकता के लोग ‘कन्या भ्रूण हत्या’ जैसी घटनाओं को भी अंजाम देते हैं।बेटियों को भ्रूण हत्या से बचाने और उनके प्रति समाज की सोच को बदलने का डॉ शिप्रा धर ने बीड़ा उठाया है। अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म पर वह उत्सव मनाती हैं।प्रसूता का सम्मान करने के साथ ही मिठाइयां बंटवाती हैं।इतना ही नहीं बेटी चाहे नार्मल हुई हो या सिजेरियन वह फीस भी नहीं लेतीं।डॉ शिप्रा का बचपन बड़े ही संघर्षो से गुजरा।जब वह छोटी थीं तभी उनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चले गये।बेटियों के प्रति समाज में भेदभाव को देखकर उनके मन में शुरू से इच्छा थी कि वह बड़ी होकर इस दिशा में कुछ जरूर करेंगी।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 2000 में एमडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ शिप्रा ने अशोक विहार कालोनी में नर्सिंग होम खोला।डॉ शिप्रा बताती हैं ‘इस बात को वह काफी दिनों से महसूस कर रही थीं कि प्रसव कक्ष के बाहर खड़े परिजनों को जब यह पता चलता था कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते थे।उनकी आपसी बातचीत से यह पता चल जाता था कि उन्हें तो बेटा होने का इंतजार था और अब बेटी ने एक बोझ के रूप में जन्म ले लिया है।बच्ची के जन्म पर उसके परिवार में फैली मायूसी को दूर करने और लोगों की इस सोच को बदलने का उन्होंने संकल्प लिया और तय किया कि अपने नर्सिंग होम में बेटियों के जन्म को एक उत्सव के रूप में मनायेंगी।मिठाइयां बंटवायेंगी,प्रसूता को सम्मानित करेंगी और जच्चा-बच्चा के उपचार का कोई फीस नहीं लेंगी।इस संकल्प को पूरा करने में उनके पति डॉ मनोज श्रीवास्तव ने भी काफी सहयोग किया।नतीजा है कि वर्ष 2014 से शुरू हुए इस अभियान में उनके नर्सिंग होम में पांच सौ से अधिक बेटियों ने जन्म लिया और इनमें से किसी भी अभिभावक से उन्होनें फीस नहीं ली।

नर्सिंग होम में बेटियों को निःशुल्क कोचिंग

गरीब बच्चियों को पढ़ाने के लिए डॉ शिप्रा अपने नर्सिंग होम के एक हिस्से में कोचिंग भी चलाती हैं जहां 50 से अधिक बेटियां निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करती हैं।इसके लिए उन्होंने अध्यापिकाओं को रखा है। समय-समय पर वह खुद भी बच्चियों को पढ़ाती हैं।इस कोचिंग का नाम उन्होंने ‘कोशिका’ रखा है।उनका कहना है कि जिस तरह किसी जीव की सबसे छोटी उसकी कोशिका होती है उसी तरह बेटियां भी समाज की एक ‘कोशिका’ हैं।इनके बिना समाज की कल्पना व्यर्थ है। इसलिये उन्हें मजबूत बनाना है।इसी सोच के तहत वह 25 बेटियों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना का पैसा भी जमा करती हैं ताकि बड़ी होने पर वह उनके काम आ सके।

निर्धन महिलाओं के लिए अनाज बैंक निर्धन महिलाओं के लिए डॉ शिप्रा “अनाज बैंक” का भी संचालन करती हैं।इसके तहत हर माह की पहली तारीख को वह 40 निर्धन विधवा व असहाय महिलाओं को अनाज उपलब्ध कराती हैं।इसमें प्रत्येक को 10 किग्रा गेहूं व 5 किग्रा चावल दिया जाता है। इसके अतिरिक्त इन सभी महिलाओं को होली व दीपावली पर कपड़े,उपहार और मिठाई भीदी जाती है।

प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं प्रशंसा

प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी भी डॉ शिप्रा के कार्यो की प्रशंसा कर चुके हैं।वर्ष 2019 में वाराणसी दौरे पर बरेका में हुई सभा के दौरान प्रधानमंत्री ने डा. शिप्रा के कार्यों की सराहना की और अन्य चिकित्सकों से भी आह्वान किया था कि वह भी इस तरह का प्रयास करें।डॉ शिप्रा के प्रयासों की शिवपुर की रहने वाली मान्या सिंह भी प्रशंसा करती हैं।वह बताती हैं कि उनकी बेटी के जन्म लेने पर उन्होंने कोई भी फीस नहीं लिया।कहती हैं कि बेटियों के प्रति दर्द ऐसे और लोगों के भी मन भी जिस रोज आयेगा उस रोज समाज में जरूर बदलाव आयेगा।

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